सीएए (सिटिज़नशिप अमेनमेंट एक्ट) 19 जुलाई 2016 को पहली बार लोकसभा में पेश किया गया था। देशभर में इस कानून के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हुए। कोविड 19 महामारी फैलने के बाद से विरोध प्रदर्शन और इसे लागू करने की सरकार की कोशिशें भी शांत हो गई थीं लेकिन गुरुवार को उत्तर बंगाल के सिलीगुड़ी में आयोजित एक चुनावी सभा में भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने CAA को ज़मीन पर लागू करने की बात कही है।
क्या कहा शाह ने ?
बंगाल में ममता बैनर्जी को घेरते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि “मित्रों आज मैं उत्तर बंगाल में आया हूं, मैं आपको स्पष्टता से समझाता हूं कि तृणमूल कांग्रेस CAA के बारे में अफवाहें फैला रही है कि CAA ज़मीन पर लागू नहीं होगा। मैं आज ये समझाता हूं, कोरोना की लहर समाप्त होते ही CAA को हम ज़मीन पर उतारेंगे। ममता दीदी आप तो चाहती ही हैं कि घुसपैठ चलती रहे और बंगाल से जो शरणार्थी आए हैं उनको नागरिकता नहीं मिले मगर कान खोलकर ये तृणमूल वाले सुन लें, CAA वास्तविकता था, वास्तविकता है और वास्तविकता रहने वाला है इसलिए आप कुछ नहीं बदल सकते।”
क्यों हो रहा है CAA का विरोध ?
प्रदर्शनकारियों के बताए अनुसार धर्म के आधार पर नागरिकता तय करने का प्रावधान ही इस कानून के विरोध का मुख्य कारण है। दरअसल नागरिकता संशोधन कानून में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मों के प्रवासियों के लिए भारत की नागरिकता पाने के नियमों को आसान बनाया गया है। लेकिन मुसलमानों को इस कानून से पूरी तरह बाहर रखा गया है।
CAA को पहली बार 19 जुलाई 2016 को लोकसभा में पेश किया गया था। तमाम प्रक्रियाओं के बाद 21 दिसंबर 2019 को यह कानून बन गया।
लेकिन कानून बनने के बाद से ही इसके ख़िलाफ़ व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। तमाम विपक्षी दलों, समाजसेवकों, संविधान के जानकारों आदि ने इसे असंवैधानिक बताया। दरअसल ये कानून धर्म के आधार पर लोगों को भारत की नागरिकता देने की बात करता है। CAA के तहत देश की नागरिकता देने की प्रक्रिया में मुसलमानों को छोड़कर अन्य कई समुदायों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। जबकि भारतीय संविधान में धर्म के आधार पर नागरिकता का प्रावधान नहीं है।
असम, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मेघालय और दिल्ली में विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा हुई और तकरीबन 83 लोगों की इसमें मौत हो गई। दिल्ली के शाहीन बाग में महिलाओं द्वारा किए गए महीनों लंबे विरोध प्रदर्शन को देश ही नहीं विदेशों से भी लोगों का व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ।
CAA कानून बनकर लागू हो चुका है लेकिन ज़मीन पर इसका पालन करवाने के लिए बनाई जाने वाली नियमावली कोविड19 महामारी के कारण अबतक नहीं बन पाई है।
DW में प्रकाशित ख़बर के अनुसार पिछले साल दिसंबर में अल्पसंख्यक मंत्रालय ने लोकसभा को एक सवाल के जवाब में बताया था कि कानून की वैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और मामला अभी न्यायालय में है। कई राज्यों ने कानून को चुनौती दी है जिनमें राजस्थान और केरल की याचिका कोर्ट में है। मेघालय, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पंजाब विधानसभाओं ने इस कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास किए हैं।