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सारकेगुडा की हत्यारी रात शपथ पत्रो में /



सारकेगुडा की हत्यारी  रात 
शपथ  पत्रो  में
/

वेसे
तो
कई
नागरिक जाँच में  सारी 
हकीकत कई बार सामने आ चुकी है /,लेकिन न्याय
आयोग के सामने  18 लोगो
ने
शपथ पत्र दिया , जिसमे सब
ने
कहा की फ़ोर्स आई तो हमने  कहा की
ये
तो
जनता है , इसके बाबजूद भी 
अंधाधुन्द  फायरिंग  की गई
,और मार डाले 20 ग्रामीण / 
 फ़ोर्स का जबरजस्त  पहरे 
के
बाबजूद कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओ  की पहल
पे
दिखाया साहस,और  कुछ लोग
आये बाहर / सारे  बयांन 
सरकार के दावे को झूटा  सिद्द 
कर
रहे हैं।
हपका  चिन्नू
[45] का कहना हैं की फ़ोर्स  नेचारी ओर 
से
घेर लिया और कहा की कोन  हो ,हम
सब
ने
जोर से कहा की जनता है ,फिर भी
फ़ोर्स ने किसी की नहीं सुनी ,चारो तरफ
सेएरे  फायरिंग  शुरू कर 
दी
,और अफरातफरी मच गई, ग्राम पंचायत
कोत्ता गुडा  की सरपंच
इरपा कमला का कहना है की कुछ गाँव  वालो और
उनका खुद का बयान दबाब डाल  के
लिख्या गया,कमला के मुताबिल उनका बयान भी अधिकारियो 
ने
लिखा,पुलिस वाल्व गाँव के लोगो से लिखवा
रहे थे की  मीटिंग  में नक्सली 
आये थे।   सारकेगुडा
के
बबलू पुत्र पोट्टी [28] का कहना
है
की
28-29 जून  को बासेगुडा  थाने  के
गाँव कोत्तागुडा,सरकेगुडा  औरराजपेन्टा 
में तीन गाँव के लोगो 
की
बैठक  थी ,बैठक में
उसका छोटा  भाई सारके
रमला [25] भी गया था ,वो शादी
शुदा और तीन  साल के
बच्चे  का पिता था ,उसके नाम
राशन कार्ड भी था ,सारके ने  दावा 
किया की मीटिंग में  सिर्फ गाँव
वाले ही थे, किसी के
पास हथियार नहीं थे,सुबह थाने  गए तो
पता चला की मेरा भाई मारा गया हैं। काका नागी [32] ने कहा
की
उसका पति सीधा सादा आदिवासी किसान था ,28 तारीख  को
वो
त्यौहार की बैठक में गया था ,उस रात
फायरिंग हुई ,उसने कभी
नहीं सोचा  था की
उसके पति  की ऐसे
मोत हो जाएगी, उसे अगले
दिन शव मिला ,उसके दोनों
घुटनों  के नीचे  की हड्डिया 
कुचली हुई थी,छाती पर गोली के निशान  थे ,आँख
और
जांघ पे भी कुचलने के निशान थे। कोत्तागुडा की [26] कमला काका ने 
कहा  की घटना की रात 9  बजे 
फायरिंग  हुई ,कई लोग
घबरा  के हमारे घर में घुस  गए 
,जहा से आवाज़ आ रही थी  , घटना
स्थल उनके घर से दूर था , सब रत
भर
तनाव  में बेठे रहे ,सुबह भी
गोली की आवाज़  सुनाई दी
, जब वहां गये तो वहां  मेरे भयीजे[
राहुल काका 15 साल ] की
टूटी घडी पड़ी मिली .  सवेरे थानेगाये तो पता चल की 17
लोग   मारे  गए हैं ,जिसमे मेरा 15
साल का भतीजा काका राहुल भी था।

ये 
कुछ बयान है जो सामाजिक कार्यकर्ताओ की पहल पे हिम्मत से बाहर आके उन्होंने शपथ पत्र   
में  दिये /अभी तक
कुल 18 लोगो न एए पत्र दिया है , लोगो की
मांग  पे अंतिम  तिथि
12 फरबरी  तक बढ़ा  दी
गई
हैं,

सारकेगुडा  जांच को प्रभावित करने के लिए सरकार के नए नए हथकंडे / पहले  किसी
को
सुचना  नहीं ,फिर गाँव
में  फ़ोर्स  का पहरा
की
कोई   गवाही देने  आ  
नहीं पाए , शपथ पत्र
की
कोई व्यवस्था नहीं , और अब
आखरी हथकंडा  की इस
जांच में दो और जांच जोड़ के  सरकार अपना 
चेहरा और दागदार करने की राह पे हैं / सिलेगार और
चिमलीपेंटा मुठभेड़  को भी
इस
जाँच से जोड़ दिया /
अभी
तक ये 
कहा जा रह था की सारकेगुडा  में हुई
हत्याओ  की न्यायिकजाँच   स्वतंत्र
रूप से की जा रही थी ,लेकिन राज्य
शाशन की 14 दिसंबर को
राजपत्र  में प्रकाशित अधिसूचना से ये बात उजागर हुई है की इस इ हैं,जांच के साथ दो और  जाँच जोड़ दी  हैं
, सही यही है की सारकेगुडा  जाँच को दूसरी मुठभेड़
के
साथ  जोड़ के उसकी भिभस्तता  को कम
करने की चाल  हैं,जब
की 
पीड़ित परिवार के लोगो
का कहना 
है  की  तीनो
जाँच की अलग अलग 
जाँच कराई जानी  थी, सारकेगुडा 
का
मामला सिलेगार और चिम्लीपेटा से बिलकुल अलग  हैं ,क्योकि
सारकेगुडा  में फ़ोर्स के लोगो ने निर्दोष 22 आदिवासियो को
मार था ,जब की
सिलेगार और चिमलीपेता हुई मुठभेड़  वास्तविक बताई
जाती हैं,
कोरसगुड़ा की चुनी हुई महिला सरपंच  झरपा कमला  ने 
लिखित में शिकायत  न्यायधीश  बी
के
अग्रवाल को भेजी है की ,सिलेगार  औ
र्चिमलीपेटा  की घटनाये
जंगरगुडा थाना  की  हैं ,जब की सारकेगुडा 
घटना बासागुड़ा  इलाके  की हैं 
इससे सही जाँच होने
की सम्भावना नहीं हैं।
लोगो  ने जब शिकायत की, कि अभी
तक
तो
गाँव तक में कोई सुचना नहीं दी गई है , और इसका
प्रकाशन भी स्थानीय रूप से नहीं किया गया हैं ,तो न्याय
आयोग ने इसकी तिथि एक माह बढा के 12 फरबरी  कर दिया  हैं,
लेकिन समस्या  तो ये
हे
की
उन 
गांवो  में फ़ोर्स  बेठी है
जो
किसी को  बाहर 
या
अन्दर  आन एजाने ही नहीं देती तो फिर कैसे लोग सपनी बात कह पाएंगे . जब तक 
प्रभावित गावों  में स्वतंत्र
माहोल नहीं बनेगा तबतक ये  सारी  जाँच
ढकोसला ही हैं।

सारकेगुडा  जांच को प्रभावित करने के लिए सरकार के नए नए हथकंडे

/ पहले  किसी
को
सुचना  नहीं ,फिर गाँव
में  फ़ोर्स  का पहरा
की
कोई   गवाही देने  आ  
नहीं पाए , शपथ पत्र
की
कोई व्यवस्था नहीं , और अब
आखरी हथकंडा  की इस
जांच में दो और जांच जोड़ के  सरकार अपना 
चेहरा और दागदार करने की राह पे हैं / सिलेगार और
चिमलीपेंटा मुठभेड़  को भी
इस
जाँच से जोड़ दिया /
अभी
तक ये 
कहा जा रह था की सारकेगुडा  में हुई
हत्याओ  की न्यायिकजाँच   स्वतंत्र
रूप से की जा रही थी ,लेकिन राज्य
शाशन की 14 दिसंबर को
राजपत्र  में प्रकाशित अधिसूचना से ये बात उजागर हुई है की इस इ हैं,जांच के साथ दो और  जाँच जोड़ दी  हैं
, सही यही है की सारकेगुडा  जाँच को दूसरी मुठभेड़
के
साथ  जोड़ के उसकी भिभस्तता  को कम
करने की चाल  हैं,जब
की 
पीड़ित परिवार के लोगो
का कहना 
है  की  तीनो
जाँच की अलग अलग 
जाँच कराई जानी  थी, सारकेगुडा 
का
मामला सिलेगार और चिम्लीपेटा से बिलकुल अलग  हैं ,क्योकि
सारकेगुडा  में फ़ोर्स के लोगो ने निर्दोष 22 आदिवासियो को
मार था ,जब की
सिलेगार और चिमलीपेता हुई मुठभेड़  वास्तविक बताई
जाती हैं,
कोरसगुड़ा की चुनी हुई महिला सरपंच  झरपा कमला  ने 
लिखित में शिकायत  न्यायधीश  बी
के
अग्रवाल को भेजी है की ,सिलेगार  औ
र्चिमलीपेटा  की घटनाये
जंगरगुडा थाना  की  हैं ,जब की सारकेगुडा 
घटना बासागुड़ा  इलाके  की हैं 
इससे सही जाँच होने
की सम्भावना नहीं हैं।
लोगो  ने जब शिकायत की, कि अभी
तक
तो
गाँव तक में कोई सुचना नहीं दी गई है , और इसका
प्रकाशन भी स्थानीय रूप से नहीं किया गया हैं ,तो न्याय
आयोग ने इसकी तिथि एक माह बढा के 12 फरबरी  कर दिया  हैं,
लेकिन समस्या  तो ये
हे
की
उन 
गांवो  में फ़ोर्स  बेठी है
जो
किसी को  बाहर 
या
अन्दर  आन एजाने ही नहीं देती तो फिर कैसे लोग सपनी बात कह पाएंगे . जब तक 
प्रभावित गावों  में स्वतंत्र
माहोल नहीं बनेगा तबतक ये  सारी  जाँच
ढकोसला ही हैं।

सारेकगुडा मुठभेड़ की न्यायिक जाँच शुरू होने की सम्भावना; 

जस्टिस वी के अग्रवाल को 
बेठने के लिए कार्यालय   तैयार
.
ये
अछि खबर है की जस्टिस अग्रवाल जी के लिए सरकार ने पंडरी रायपुर में उपभोक्ता फोरम के दुसरे माले पे जगह दे दी है,और जगदलपुर में केम्प लगा के सुनवाई की जाएगी ,इनका स्वागत
है .हम
आशा करते है की इस फर्जी मुठभेड़  की सच्चाई
सब
के
सामने  आएगी ,हालाकि किसी
को
भी
इस
सच्चाई से inkaar
nahi   है की वहा क्या हुआ था ,कैसे सुरक्छा 
बालो ने निर्दोष आदिवासियों को बिना किसी चेतावनी के मार  र्दिया
था
.किसी से कुछ छिपा नहीं है ,कई जांच
रिपोर्ट आई कई दल वहा गए ,कई बयान
आये ,कुछ कुछ सरकार ने भी माना कुछ सुरक्छा  बलों  ने
भी
स्वीकार किया
अब
जब
न्यायिक  जाँच शुरू हो रही है तो ये जरुरी है की वहां  के गाँव
की
स्थितियों  की जानकारी की भी बात भी की जाए, की वहा
के हालात क्या 
हैं।क्या वे लोग न्यायधीश के सामने  वो भी जगदलपुर में आके  बयान देने
की
स्थिति  में है
,में
कहता हूँ बिलकुल नहीं। सारेगुड़ा  और आसपास 
के
गांवो में सुरक्छा बल घुस आया है ,न किसी
को
गाँव में आने देते   है ओर न किसी को गॉव  से बाहर जाने देते   है यहाँ तक की खेती करने के लिए भी आसिवासी मोहताज़  हो गए
है। गाँव में इनकी दहशत  है
,बार बार खाना तलाशी ,?क्यों जा
रहे हो ? कोन  आ
रहा है?,एक बहन को जब अपने
बच्चे को दूध पिलान ए
को खेत
में जाना था तो सेनिक ने उसको  कहा   की तेरा दूध निकलता है तो मेरे सामने  निकालके   दिखा ,और उस
महिला ने डर   के मारे अपना दूध उस सेनिक के सामने निकल  के दिखायी  भी।
क्या
किसी को लगता है की ऐसे हालत ने  कोई बयान  देने वहा आ पायेगा या उसे आने दिया जायेगा ,और ये
भी
की जिसे  पोलिस बयान देने के लिए लाएगी वो क्या पारदर्शी तरीके से कुछ कह पायेगा, में आशा 
हूँ और न्याय प्रणाली मे भरोसा भी करता
हूँ ,हो सकता है की सब कुछ  सामने आ  जाये या .,हमेशा की
तरह वही  हो ढांक  के तीन पात।

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