बिलासपुर। अपनी भद्द पिटवाने में बिलासपुर पुलिस नित नए कीर्तिमान रच रही है। ज़िला प्रशासन द्वारा जारी आदेशों का पालन करवाने की ज़िम्मेदारी पुलिस के आला अधिकारियों की होती है। लेकिन बीते कुछ महीनों की घटनाओं को सिलसिलेवार देखने से ये बात साफ़ ज़ाहिर हो जाती है कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिस दूरदृष्टि की ज़रूरत होती है उसका अंश भी यहां नज़र नहीं आ रहा है।
दुर्गा विसर्जन और ईदमिलादुन्नबी की रैलियां इसका सबसे ताज़ा उदाहरण हैं।
ज़िला प्रशासन ने सख़्त आदेश जारी किए थे कि रात 10 बजे के बाद डीजे नहीं बजने चाहिए। सख़्त आदेश जारी कीए गए थे कि तेज़ कानफाडू डीजे सड़कों पर नहीं दिखने चाहिए लेकिन तमाम पुलिस थानों के सामने ही खुलेआम फुल साउंड में पूरी रात डीजे बजते रहे और पुलिस बेबस खड़ी देखती रही।
भीड़ ने कोतवाली थाने के सामने के डिवाइडर को पुलिस के सामने ही तोड़ डाला और पुलिस कुछ नहीं कर पाई। इतनी बड़ी हज़ारों की भीड़ को संहालने के लिए ज़रूरी प्लानिंग की कमी साफ़ नज़र आई।
आज ईदमिलादुन्नबी का जुलूस निकालने की मनाही थी हाईकोर्ट ने भी इसकी अनुमति नहीं दी थी। इस जुलूस की तैयारी भी कई दिनों हो रही थी। साफ़ ज़ाहिर था कि आज बड़ी भीड़ उमड़ेगी लेकिन शहर के एडिशनल एसपी उमेश कश्यप गिनती के पुलिस वालों के साथ खड़े दिखे। भीड़ एडिशनल एसपी के सामने से निकल गई और साहब देखते रह गए।
साफ़ नज़र आया कि एडिशनल एस पी ने आज के जुलूस के लिए कोई भी प्लानिंग नहीं की थी।
दुर्गा विसर्जन के जुलूस में भी कोतवाली थाने के सामने युवक भीड़ में चाकू लहरा रहे थे लेकिन पुलिस को हवा तक नहीं लगी। चाकू लहराने वाली बात की जानकारी भी मीडिया के द्वारा एडिशनल एस पी को दी गई थी बावजूद इसे उन्होंने अब तक कोई कारवाई नहीं की है।
छोटी मोटी कारवाईयों को उछल उछल कर बताने वाली बिलासपुर पुलिस को धराशाई हो चुकी कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए कुछ कदम अब उठा ही लेने चाहिए।