7.02.2019/ बिलासपुर
राजू जो एक ग्राम किलम, छोटे डोंगर जिला नारायणपुर के रहने वाले 65 वर्षीय आदिवासी व्यक्ति हैं उन्हें 1 जुलाई 2007 के गिरफ्तारी वारंट के आधार पर पुलिस ने 19 सितंबर 2016 को गिरफ्तार किया. अदालत में पेश होने की पहली तारीख पर, उसने अदालत को बताया था की उसके पिता का नाम पुग्डू है, न कि बद्दी, जैसे की गिरफ़्तारी वारंट में उल्लेख किया गया है। कोंडागांव की अदालत ने गलत पहचान पर कोई आदेश नहीं दिया। दिसंबर 2016 में, मामला विशेष अदालत, जगदलपुर में स्थानांतरित कर दिया गया।
राजू के मामले में सितंबर 2016 से अब तक, रिकॉर्ड कोर्ट में पेश नहीं किया गया था। विशेष न्यायाधीश ने कईं बार जिला और सत्र न्यायालय, कोंडागांव को केस का रिकॉर्ड भेजने के लिए ज्ञापन भेजे और उसके बावजूद भी फाइलें नहीं भेजी गईं. दिसंबर 2018 विशेष न्यायाधीश ने आरोपी की जमानत खारिज कर दी.
राजू की वकील ने दलील दी कि मुकदमे में देरी और ऐसी परिस्थितियों में जेल में आवेदक को बंदी बनाये रखना उसके मौलिक अधिकारों का / धारा 14,19 और 21/ का घोर उल्लंघन है। इसके अलावा यह भी जाहिर है आवेदक इस मामले में अभियुक्त भी नहीं है क्योंकि यह गलत पहचान का मामला है। आवेदक बिना किसी केस के दस्तावेजों या मामले की जानकारी के या फिर गिरफ्तारी का कारण जाने ढाई साल से अधिक समय तक जेल में रह चुका है।
अदालत में सुनवाई के दौरान यह भी मालूम हुआ कि पिछले ढाई साल से जो गायब ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड है, माननीय उच्च न्यायालय के नोटिस भेजने पर मिल गया है और उच्च न्यायालय को भेज दिया गया. प्राप्त रिकॉर्ड से यह पता चला कि 2007 में दर्ज इस मामले में कई आरोपी फरार थे। 2007 में, उस समय गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों को मुकदमे के बाद बरी कर दिया गया था। 2008 में, आरोपी के रूप में नामजद कुछ और लोगों को गिरफ्तार किया गया, और मुक़दमे के बाद उन्हें अदालत ने बरी कर दिया। फिर तीसरी बार, 2013 में, अन्य सह-आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, और उन्हें बरी कर दिया गया। 2007 के उसी मामले में गिरफ्तारी की यह चौथी घटना थी। विडंबना यह है कि इस समय आरोपी सबसे लंबे समय तक जेल में था, क्योंकि फाइलें गायब थीं, बाकी सभी नामजद अभियुक्त जो बरी हुएं वो लगभग एक साल से कम समय के लिए जेल में थे.
माननीय उच्च न्यायालय ने इस प्रशासनिक चूक की चौंकाने वाली परिस्थितियों पर घोर आपत्ति व्यक्त करते हुए आवेदक को जमानत दी। अदालत का आदेश मौखिक रूप से खुली अदालत में तय किया गया था और इसकी प्रति अभी उपलब्ध नहीं है।
आवेदक राजू की तरफ से जगदलपुर लीगल एड़ ग्रुप के साथ काम कर रही अधिवक्ता शिखा पांडे ने पैरवी की थी.