प्रोम्थियस प्रताप सिंह
विस्सारियन ग्रिगोरियेविच बेलिंस्की का जन्म 12 जुलाई 1811 को एक देहाती डॉक्टर के घर हुआ था। बचपन का अधिकतर समय पेंजा गुबर्निया के चेम्बर नामक कस्बे में बीता। उन दिनों भला कौन सोच सकता था कि वह छोटा-सा कस्बा आगे चलकर सुन्दर नगर का रूप धारण करेगा और उसका नाम इसी बालक के नाम बेलिंस्की पड़ेगा?
बचपन में ही बेलिंस्की कुशाग्रबुद्धि छात्र थे। 1829 में उन्होंने मास्को विश्वविद्यालय में अध्ययन आरम्भ किया; किंतु तीन वर्ष बाद ही अधिकारियों ने “बुरे स्वास्थ्य” का दोष लगाकर उन्हें विश्वविद्यालय से निकाल बाहर किया। यह “बुरा स्वास्थ्य” और कुछ नहीं बेलिंस्की का नाटक “दिमित्री कालीनिन” था, जो उन्होंने इसी काल में लिखा था और जिसमें दास-प्रथा और सामन्तवाद की तीव्र आलोचना की गयी थी।
1833 में बेलिंस्की ने अपना नया जीवन आरंभ किया। यह नया जीवन था साहित्यालोचक का जीवन और इस जीवन ने मृत्यु के बाद उन्हें अमर बना दिया।
उनके लेखों ने एक ओर जहां रुसी समाज के सभी प्रगतिशील तत्वों को आंदोलित तथा उत्साहित किया, वहां दूसरी ओर ज़ारशाही के चरणों को अपना कट्टर शत्रु बना लिया। “शाही विज्ञान अकादमी” के एक सदस्य फ्योदोरोव ने तो ‘आतेचेस्तेवेन्नीए ज़ापिस्की’ में छपे उनके सभी लेखों को काटकर सात टोकरियों में भरा और प्रत्येक पर “ईश्वर के विरुद्ध”, “सरकार के विरुद्ध”, “नैतिकता के विरुद्ध” आदि लिखकर खुफिया पुलिस में पंहुचा दिया। एक ओर जहां यह स्थिति थी, वहां दूसरी ओर बेलिंस्की की लोकप्रियता की भी सीमा नहीं थी। बेलिंस्की पर दर्जन का निबंध पढ़ते ही इसका बोध हो जाता है।
1847 में बेलिंस्की उदर रोग से पीड़ित हुए। इलाज के लिए वह फ्रांस और जर्मनी गये, किन्तु कोई लाभ न हुआ। जब वह साल्ज़ब्रुन्न में थे, तभी 3 (15) जुलाई, 1847 को उन्होंने गोगोल के नाम अपना प्रसिद्ध पत्र लिखा। हर्जन के अनुसार यह पत्र रुसी क्रान्तिकारियों की कई पीढ़ियों के लिए “घोषणापत्र” बन गया।
26 मई 1848 को बेलिंस्की का निधन हुआ और उनका अंतिम दाह-संस्कार सेंट-पीटर्सबर्ग में हुआ।
उनके कुछ प्रसिद्ध उद्-बोधन
● कला सत्य का सहज-तात्कालिक आवगहन या छवियों में सोचने की प्रक्रिया है।
● कलाकार का चिरन्तन मॉडल है प्रकृति में सबसे श्रेष्ठ और शुभ्र मॉडल है मानव।
● युग की आत्मा से विछिन्न मानवीय इच्छा पेड़ से टूटे पत्ते की भांति घुल में आ गिरती है- चाहे उसके पीछे नीयत अच्छी हो या बुरी।
● न कुछ में से कुछ रचना करना खुदा के घर की बात है मरणासन्न आदमी को जिन्दा किया जा सकता है, लेकिन उसे नहीं जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है।
● इस दुनिया में चरम महत्व या चरम अमहत्व जैसी कोई चीज़ नहीं।
● कल्पना में हर कहीं इतनी सम्पन्नता और प्रचुरता, वास्तविकता में हर कहीं इतना दैन्य और तुच्छता!
● गरीबी उस निस्सहाय अवस्था का नाम है जिसे भुखमरी के चिरन्तन भय से निस्तार पाने की कोई राह नहीं सूझती।
● बदी को नज़रअंदाज़ कीजिये, आप नेकी को भी नष्ट कर देंगे। कारण यह बदी के विरुद्ध संघर्ष में ही नेकी नेकनाम होती है या नेकी बनती है।
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