28.01.2019
० दस्तक के लिए प्रस्तुति : अनिल करमेले
हिंदी सिनेमा में बीते कई सालों से एक अजीब-सा चलन सामने आया है और ये चलन है पुराने गानों को नये अंदाज़ में पेश करने का. ये गाने सत्तर या अस्सी के दशक के भी हैं और बाद के यानी नब्बे के दशक के भी. कई बार पुराने गाने उठाए जाते हैं—तो उनका मुखड़ा वैसा का वैसा रखा जाता है जबकि अंतरे नए लिखवा लिए जाते हैं. ऐसे गाने आने चाहिए या नहीं आने चाहिए—दोनों मुद्दों पर लोगों के अपने-अपने तर्क हैं.