सुधा भारद्धाज…एक वो नाम, जिसको इस आरएसएस वाली सरकार ने नक्सली बताया है, जब कि सुधा जी एक ऐसी व्यक्तित्व की धनी है, कि उनके त्याग और संघर्ष की मै कायल हूंं .
बहुत अच्छे से जानती हू कि वो क्या है…
मै सुधा भारद्वाज बनना ज्यादा पसंद करूंगी, जिसने हमेशा संविधान के दायरे के अंदर अपने कामों को किया है। ऐसे में अगर मै भी नक्सली कहलाई जाऊ, तो मुझे अफसोस नहीं।
बस ऐसे ही लोग अतंकवादी भी बताए जाते है।
तो जब हम कश्मीर के सवालों पर बात करे, तो एक बार हकीकत जानने की कोशिश कर ले, क्युकी पुलिस का रवैया क्या होता है, सभी जानते है।
जब मामला दर्ज होता है, हल्ला तभी तक होता है।
जब कोई दोषमुक्त होता है या गलत फसाया जाता है, तो उसके बारे में एक लाइन भी पढ़ने नहीं मिलती।
हमारा गुस्सा और विरोध एक निर्दोष को दोषी बना देता है कई बार, ये जान लीजिए।
काश्मीर का क भी जानते हम, और दूर से सिर्फ गोली मारो, फांसी दे दो आदि जैसी फांसिवादी भाषा का इस्तेमाल अपने कम्फर्ट जोन के अंदर खूब कर लेते है।
खूब मैसेज फैलाए जाते है कि फलाना आतंकवादी है, हम मान भी लेते है, क्यूं फलाना मात्र मुसलमान है।
खूब मैसेज बनाकर फैलाए जाते है कि फालाना नक्सली है, क्यूंकि वह आदिवासी है, आदिवासी की पोस्ट करता है या आपसे वैचारिक असहमत है…
खबू मैसेज बनाए जाते है कि फलाना तो अलगाववादी है, क्योंकि उसने फलाने देश की ज़िंदाबाद कर दी…..
आखिर ऐसा कह सकते है कि ये देशद्रोह है, अरे किसी को नीचा दिखाकर तुम कैसे बड़े बन सकते है??
अगर किसी मुल्क के ज़िंदाबाद कर देना देशद्रोह है, तो सबसे पहले तो जाकर सनी देओल को पकड़ो, गदर फिल्म में उसने भी ज़िंदाबाद का नारा लगाया था।।
ये वक्त है संवेदनशीलता से चीजों को समझने का, इसके बाद लोकतांत्रिक और भाषा का संयम रखकर वैचारिक असहमति रखिए,….
और हा, गूगल और वॉट्सएप यूनिवर्सिटी के आधार पर आंकड़े मत लाइएगा, ये ज्ञान नहीं बल्कि भटकाने का एक तरीका है, सही ज्ञान के लिए सही जानकारी वाले व्यक्ति को पकड़िए उससे बात करिए, सही किताब में खोजिए, सही इतिहास ढूंढिए।।