2.02.2019/ बिलासपुर
बिलासपुर के देवकीनंदन चौक पर कल से जारी धरना छत्तीसगढ़ के स्वास्थ मंत्री टीएस सिंह देव के हस्तक्षेप के बाद आज दोपहर समाप्त कर दिया गया.
प्रियंका शुक्ला ने कहा कि हम यह भरोसा करते है कि छत्तीसगढ़ सरकार सिम्स में हुई आगजनी के लिये जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्यवाही करेगा और मृत बच्चों के परिजनों को पांच लाख रूपये तथा अन्य बीमार बच्चों को समुचित मुआवजा देंगे.
सिम्स अधीक्षक बी पी सिंह तथा अन्य संलग्न घोटाले बाजों द्वारा की गई अनियमितता के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाये तब तक उन सब को निलंबित किया जाये .
इलेक्ट्रॉनिक विभाग में तकनीकी स्टाफ की बहाली की जाये ,फायर एंड सेफ्टी के कडे नीयम बनाकर उसपर अमल किया जाये । जिन अधिकारियों की लापरवाही के कारण बच्चों की मौत हुई हैं उनपर गैर इरादतन हत्या का केस रजिस्ट्रर किया जाये.
प्रियंका ने यह भी कहा कि हम लोग एक समय सीमा तक कार्यवाही का इंतजार करेंगे. यदि कुछ नहीं होता तो माननीय उच्च न्यायालय का द्वार खटखटायेंगे .
धरना हटाने की हुई कोशिश .
दोपहर दो बजे जैसे ही धरना शुरु हुआ तो कांग्रेस के कुछ स्थानीय कार्य कर्ता प्रियंका और दूसरे लोगों को धरना बंद करने के लिये हुज्जत करने लगे .इसी स्थान के पास विधानसभा अध्यक्ष के स्वागत के लिये बडी तैयारियां की जा रहीं थी . यह कहने पर कि हमारा धरना एक दिन पहले से चल रहा हैं .काफी गरमा गरमी के बाद पुलिस को लेके आ गये.कोतवाली के टीआई राजेश मिश्रा ने काफी नाराजी के साथ धरना समेट लेने को कहा . जब तक काफी प्रेस और आंदोलन कारी एकत्रित हो गये तब जाकर पुलिस वहां से वापस गई.
तेरे को अंदर कर दूंगा
प्रियंका ने बताया कि बिलासपुर के सिविल लाइन के थानेदार जगदीश मिश्रा ने आज तीसरी बार धमकी दी है कि अंदर कर दूंगा, तेरे खिलाफ तो कई मामले है, जैसे मै कोई चोर, डाकू हूंं.
स्वास्थ्य मंत्री ने भेजे अधिकारी .
कल शाम को ही स्वास्थ मंत्री टी एस सिंह देव ने प्रियंका शुक्ला को दिल्ली से फोन करके कहा था कि वे कल किसी को भेजकर मांगपत्र मंगवायेंगे और जिम्मेदार लोगो के खिलाफ तुरंत कार्यवाही करेंगे. जिला प्रशासन से दो अधिकारी धरना स्थल पर आये और उन्हें ज्ञापन तथा अन्य आवश्यक दस्तावेज सोंप दिये.
संपूर्ण ज्ञापन इस तरह से है .
21 जनवरी को बिलासपुर के सिम्सअस्पताल(मेडिकल कॉलेज) में एक बार फिर से लापरवाही की घटना, वहां के प्रबन्धन के द्वारा सामने आई है। सिम्स प्रबंधन की लापरवाही से हुई इस घटना में22 नवजात बच्चे फंस गए थे। घटना के बाद आनन फानन में बच्चों को लगभग 5घंटे के लिए ज़िला असपताल भेज दिया और उसके बाद उन्हें अलग-अलग निजी अस्पतालों में स्थानांतरित किया गया था।
यह बेहद शर्मनाक है कि सरकार में पर्याप्त फण्ड और चीजो के बावजूद सरकारी अस्पतालों को बच्चे निजी अस्पतालों में भेजने पड़े है. आज तक ऐसा ढांचा तैयार करने और यहत्रयचीजो को सही और सुचारू तौर पर लागू कर पाने में असफल रहा है. घटना के दिन से अब तक उनमें से 5 बच्चों की मृत्यु हो चुकी है। मासूम बच्चों का यूं लगातार मरते जाना समाज को झकझोरता तो है ही, सरकार की स्वस्थ्य नीतियों प्रति अविश्वास भी पैदा करता है.
5 बच्चों की मौत हो चुकी है, पर शासन की तरफ़ से अब तक कोई भी कड़े कदम नहीं उठाए गए हैं और न ही पीड़ित परिवारों को कोई आर्थिक सहायता सरकार द्वारा प्रदान करवाई गई है।
जबकि सिम्स अस्पताल में लापरवाही की ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं।
आपको याद दिलाते हुए बताना चाहेंगे कि इसके पहले भी नसबंदी कांड जैसा बड़ा मामला इसी सिम्स अस्पताल की देन है। मार्च 2018 में भी ठीक ऐसी ही एक घटना और भी घटित हुई थी, जिसमें शार्टसर्किट से मैटरनिटी वार्ड में आग लगी थी और लगभग 10 महिलाए फंस गई थी, अभी साल भर भी नहीं बीता और ये घटना घटित हो गई है।
ये बात बेहद शर्मनाक औए असंवेदनशील है कि इतनी गंभीर घटना की ईमानदारी से जाँच कर, खामियां सुधारने की बजाए सिम्स प्रबंधन लीपापोती कर अपना पल्ला झाड़ने में लगा है. इसके अलावा ये भी संज्ञान में लाना चाहेंगे कि व्यक्तिगत तौर पर जब हमारे द्वारा निजी अस्पतालों में जाकर एडमिट बच्चो व उनके परिवार वालो का हाल चाल जानना चाहा, तो पाया कि बच्चे की मां के आलावा परिवार के किसी को भी खाना नहीं दिया जा रहा था, जिससे उन्हें खाना खरीदकर खाना पड़ रहा था, जो कि सरकार और सिम्स प्रबन्धन की जिम्मेदारी थी। क्योंकि ये मामला दुसरे सामान्य मामलों से अलग है, और प्रत्येक पीड़ित परिवार बेहद गरीब व मजदूर तबके का है,उनके लिए एक एक रुपया मायने रखता है।
सिम्स अधीक्षक बी.पी. सिंह जिनके ख़िलाफ़ पूर्व में भी उनकी नियुक्ति से सम्बंधित दस्तावेजो के साथ छेडछाड कर षड्यंत्र से पदोन्नत होने का मामला सामने आया था. जांच टीम द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन में उन्हें व कुछ अन्य को इसमें दोषी पाया गया था. वे आज तक अधीक्षक पद पर पदस्थ हैं अतः उनके सहित प्रबन्धन में बैठी घोटालेबाजों की चौकड़ी को अविलम्ब निलंबित कर, उन पर कड़ी दंडात्मक कार्यवाही की जाए.
घटना में खत्म हुए बच्चों के परिवार को, प्रति परिवार 5 लाख तक का, मुआवज़ा दिया जाए.