23 मार्च 2019 , अंतागढ़
अंतागढ विकासखण्ड के ग्राम सोड़े में भारत ज्ञान विज्ञान समिति छत्तीसगढ़ के तत्वाधान में सबका देश हमारा देश अभियान के अंतर्गत स्कूल शिक्षा साक्षरता पर जन संवाद किया गया ।
अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क (AIPSN) के द्वारा स्कूल शिक्षा और साक्षरता पर जन घोषणा पत्र पर जन संवाद किया गया ।जिसमें निम्नलिखित बिंदु थे
1. 2011 के जनगणना आंकड़ों के मुताबिक 27% लोग अशिक्षित हैं, जो कि हमारी जनसंख्या के 30 करोड़ से अधिक को शामिल करता है। महिलाओं में साक्षरता की दर मात्र 65% है जिसका अर्थ है कि 35% महिलाएं अभी भी अशिक्षित हैं। दलितों, आदिवासियों, तटीय इलाकों के मछुआरों और अन्य पिछड़ा वर्ग समुदाय से संबंधित लोगों में साक्षरता की दर काफी कम है। हम वर्तमान स्थिति को कैसे सही ठहरा सकते हैं, खासतौर पर तब जबकि आज़ादी के 71 सालों के बाद भी हमारे देश में 30 करोड़ से अधिक अशिक्षित भाई-बहन मौजूद हैं।
2. UNESCO (यूनेस्को) द्वारा दुनिया भर में जारी की गई द एजुकेशन फॉर ऑल ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2013-2014 (GMR) में भी स्वीकार किया गया है कि अभी तक भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा 287 मिलियन (28 करोड़ 70 लाख) अशिक्षित लोगों की जनसंख्या है, जो कि वैश्विक योग का 37 प्रतिशत है। यह रिपोर्ट स्पष्ट रूप से इस तथ्य को रेखांकित करती है कि सर्वाधिक हाशिये पर रहने वाले समूहों के लोगों को दशकों से शिक्षा के अवसरों से वंचित रखा जाना जारी है। रिपोर्ट आगे कहती है कि धनी युवा महिलाओं ने पहले ही वैश्विक साक्षरता का स्तर हासिल कर लिया है लेकिन गरीब महिलाओं के लिए ये सन 2080 के आसपास संभव हो पाने का अनुमान है, यह बात ध्यान देने योग्य है कि भारत के भीतर यह विशाल असमानता सर्वाधिक जरूरतमंद लोगों की ओर पर्याप्त रूप से समर्थन दे पाने में विफलता की ओर इशारा कर रही है।
3. भारतीय शिक्षा प्रणाली दुनिया की सबसे बड़ी शिक्षा प्रणालियों में से एक है, जिसमें 2014-15 के लिए UDISE के आंकड़ों के मुताबिक कक्षा 1 से 12 तक लगभग 260 मिलियन (26 करोड़) बच्चे पढ़ रहे हैं, यह 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्थित है, 683 ज़िलों में 15 लाख से ज्यादा स्कूल शामिल हैं; लगभग 75% प्राथमिक, 43% सेकेंडरी और 40% हायर सेकेंडरी स्कूलों का स्वामित्व और प्रबंधन सरकार करती है, बाकी के निजी क्षेत्र में हैं, जिनका स्वामित्व और प्रबंधन निजी एजेंसियां करती हैं। 2014-15 के U-DISE आंकड़ों के मुताबिक स्कूलों में दाखिला लेने वाले 260 मिलियन बच्चों में, प्राथमिक शिक्षा 192 मिलियन (19 करोड़ 20 लाख) बच्चों को शामिल करती है, सेकेंडरी शिक्षा में 38 (3 करोड़ 80 लाख) मिलियन बच्चे हैं और हायर सेकेंडरी शिक्षा में 24 मिलियन (2 करोड़ 40 लाख) बच्चे शामिल हैं। इन आंकड़ों में उच्चतर शिक्षा में दाखिला लेने वाले बच्चे शामिल नहीं हैं जिसमें 30 मिलियन (3 करोड़) से ज्यादा छात्र शामिल होते हैं। जन शिक्षा ही एकमात्र प्रणाली है जिसका देश के अधिकांश परिवारों से सीधा संपर्क है।
4. वास्तविक संख्या पर कम विश्वसनीय आंकड़ों के साथ आज भी स्कूली आयु वर्ग के लाखों बच्चे अभी भी स्कूल से बाहर हैं। कई अध्ययनों से स्थापित हुआ है कि कक्षाओं, शौचालय, और पीने का पानी जैसी मूलभूत अधोसंरचनात्मक सुविधाओं की उपलब्धता भी कक्षाओं में उपस्थिति, टिके रहने और सीखने की गुणवत्ता पर असर डालती है। RTE अधिनियम किसी स्कूल के लिए न्यूनतम भौतिक और शैक्षणिक अधोसंरचना निर्धारित करता है। दुर्भाग्य से, अधिकांश सरकारी स्कूल और बड़ी संख्या में निजी स्कूल RTE अधिनियम द्वारा प्रस्तावित मानदंडों को, इनके संपूर्ण अनुपालन की तारीख 31 मार्च 2015 के गुजर जाने के बावजूद पूरा नहीं करते हैं। प्राथमिक स्तर पर कक्षा 1 में दाखिला लेने वाले 10 बच्चों में से सिर्फ 6 बच्चे कक्षा 8 तक पहुंचते हैं- यानी 40% बच्चे कक्षा 8 से पहले ही औपचारिक प्रणाली को छोड़ देते हैं और वे स्कूल छोड़ने वाले बच्चों में सबसे अधिक हैं, 47% बच्चे कक्षा 10 में पहुंचने से पहले तक बाहर निकल जाते हैं। ये आधिकारिक आंकड़े हैं- वास्तविकता इससे कहीं ज्यादा चिंताजनक है। SC/ST विद्यार्थियों और छात्राओं के पढ़ाई छोड़ने की दर ज्यादा है। भौतिक अधोसंरचना, पेयजल की सुविधाएं और बालिकाओं के लिए शौचालय की सुविधाएं संतुष्टिजनक स्तर से काफी कम हैं। देश में प्राथमिक स्कूलों में 80 लाख से अधिक शिक्षक हैं, और सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी स्कूलों में 20 लाख से अधिक हैं। लगभग 59% प्राथमिक शिक्षक सरकारी स्कूलों में हैं; इसके बावजूद देश के 8% प्राथमिक स्कूल एकल शिक्षक स्कूल हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि प्राथमिक स्कूलों में 9 लाख से अधिक शिक्षकों की कमी है; लगभग 14% सरकारी सेकेंडरी स्कूलों में प्रस्तावित न्यूनतम 6 शिक्षक नहीं हैं। शिक्षकों की रिक्तियां सबसे ज्यादा आदिवासी इलाकों में हैं, सुदूरवर्ती गांवों में जहां अपर्याप्त सुविधाओं के कारण शिक्षक तैनाती से हिचकिचाते हैं
5. संपूर्ण रूप से RTE का क्रियान्वयन धीमा रहा है। सरकार द्वारा गंभीरता से लागू की गई एकमात्र योजना गैर- सहायता प्राप्त स्कूलों की स्थापना की अनुमति देना रहा है और कुछ राज्यों ने अपने खुद के पब्लिक स्कूलों को PPP मोड के तहत निजी एजेंसियों को सौंपने का प्रयास भी किया है। प्राथमिक और सेकेंडरी शैक्षणिक स्तर के बीच में बड़ी संख्या में छात्रों का पढ़ाई छोड़ना एक संकेत है कि RTE अधिनियम और NCF 2005 में प्राथमिक शिक्षा के लिए परिभाषित अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा के मापदंडों को पूरा नहीं किया जा रहा है। यह भारत के युवा नागरिकों के कानूनी अधिकार के उल्लंघन का एक उदाहरण है।