विकासशील फाऊडेशन बिलासपुर द्वारा कीस्टोन फाऊडेशन तमिलनाडु व प्रेरक समिति राजिम के सहयोग से एक दिवसीय संभाग स्तरीय कार्यशाला का आयोजन दिनांक 27-90-2019 को सभागार अटल बिहारी बाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर में किया गया. फाऊडेशन के अध्यक्ष लक्ष्मीकुमार जायसवाल ने बताया कि इस कार्यशाला के में मुख्य रूप से भारतीय वन कानून 1927 में प्रस्तावित संशोधन बिल 2019 के संबंध में और समुदाय में इसका अनुमानित प्रभाव के विषय पर चर्चा हुई.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद छ.ग. प्रदेश उपाध्यक्ष संत कुमार नेताम. अध्यक्षता प्रेस क्लब बिलासपुर के सचिव वीरेन्द्र गहवई ने की, विशिष्ट अतिथि रामगुलाम सिन्हा, अभ्युदय सिंह, डॉ राजीव अवस्थी, नितेश साहू.
संत कुमार नेताम ने अपने कहा कि वन ग्रामो में रहने वाले आदिवासी ग्रामीणों को वन कानून के बारे में जानकारी नहीं रहती जिससे कि वे अपने वन अधिकार से वंचित रह जाते हैं. उन्होंने 2006 की वन कानून को आदिवासी हितैषी कानून बताते हुए कहा कि इस वन कानून में ग्राम सभा को ही पूर्ण अधिकार दिया गया था लेकिन 1927 का प्रस्तावित कानून वन में रहने वाले आदिवासियों को आतंकित करने वाला कानून है. इसलिए आदिवासी समाज से अपील करते हुए उन्होंने कहा कि 2019 के वन कानून पर असहमति जताएं.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वीरेन्द्र गहवई ने कहा कि संशोधित वन कानून को लागू करके सरकार वनवासियों से उनके अधिकार छीनने की साजिश कर रही है. उन्होंने कहा कि वन ड्राप्ट बनाने में जंगलों में रहने वाले आदिवासी महिलाओं व आदिवासी समाज की भूमिका सुनिश्चित की जानी चाहिए.
विशिष्ट अतिथि रामगुलाम सिन्हा ने कहा कि प्रत्येक मनुष्य का जीवन वनों के साथ हो रही छेड़छाड़ से प्रभावित होता है. जलवायु परिवर्तन या पर्यावरण प्रदूषण का बहुत बड़ा कारण वनों का नष्ट होना है, इसलिए हमें अपने जल जंगल जमीन को सुरक्षित बनाये रखना चाहिए. 1927 प्रस्तावित संशोधित वन कानून को पूर्णतः वन ग्रामो में रहने वाले आदिवासियों के हितों के लिए घातक बताते हुए इन्होंने विस्तार से इसकी जानकारी दी.
विशिष्ट अतिथि अभ्युदय सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ में आदिवासियों का जीवन व उनकी संस्कृति वनों से जुड़ी हुई है अतः वनों से उन्हें हटाना मतलब उनकी पूरी सभ्यता से उन्हें वंचित कर देना है.
विशिष्ट अतिथि डॉ राजीव अवस्थी ने आदिवासियों की आजीविका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जंगल का संरक्षण व संवर्धन करने का काम केवल वनवासी ही कर सकते हैं इसलिए उनके जीविका पर ध्यान रखते हुए उनके हितों की रक्षा होनी चाहिए.
नितेश साहू व अजय सिंह ठाकुर ने कहा कि संशोधित वन कानून के प्रति हम सभी को अपनी असहमति व्यक्त करनी चाहिए.
इस कार्यशाला में विषय विशेषज्ञ सामाजिक कार्यकर्तागण व समुदायीक, मुखियागण, वन अधिकार समितिओ के अध्यक्ष, सचिवो, और स्वयंसेवी संस्था कोरबा जिला, जांजगीर-चाम्पा, रायगढ़, मुंगेली व बिलासपुर जिले के स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल रहे.