(पेंटिंग पिकासो की दोनों )
शरद कोकास की लम्बी कविता ‘देह’
भाग दस
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भीतर के गहन अंधकार में सुनाई आती है सिर्फ
आवागमन करती आवाज़ों की पदचाप
जिन्हें छूने या विरत होने के द्वंद्व में
सचल हो उठती है यह सजीव देह उनके साथ
और यथार्थ के पत्थरों से ठोकर खाकर
दर्द की घाटियों में दम तोड़ देती है
कई लुभावने दृश्य हैं इन आवाज़ों के पर्दे में
सिर्फ इस लोक के नहीं तथाकथित अन्य लोक के भी
जहाँ हर पुण्यवान देह के लिए आरक्षित हैं सुविधाएँ
अहा ! मधु के झरने, अहा ! मखमली बिछौने
हूरो गिलमाँत(26) ,अप्सराएँ ,सुख के स्वाद सलोने
वहीं पापी देह के लिए सुनिश्चित नर्क की यातनाएँ
उफ़ झुलसाती आग उफ़ दहकती चिताएँ
धर्मग्रंथों के फड़फड़ाते पन्नों और उपदेशों में
स्वर्ग के आधिपत्य में नर्क साँस ले रहा है
जहाँ पुलसिरात(27) पर कामयाबी से गुज़रती देह का
छूट चुकी देह पर शासन है
जहाँ सुनिश्चित है इस लोक और उस लोक में
एक अपराध के लिए दो बार दंडित किया जाना
शासक का स्वर्ग यहाँ भी है वहाँ भी
शासित का सिर्फ नर्क यहाँ भी और वहाँ भी
जीते जी स्वर्ग की यात्रा करने वालों के लिए
टिकटें उपलब्ध हैं इस नई सहस्त्राब्दि में
स्वर्ग जाने को इच्छुक देहें
कृपापूर्वक इस आधुनिक यान में बैठ जाएँ
कैरेबियन और हवाई द्वीप की ओर हैं इसकी उड़ाने
यह यान लॉस वेगास और बैंकाक(28) को जाता है
नर्क में जाने को विवश समस्त उपेक्षित वंचित पापी देहें
अपने ज़ख्मी पांव घसीटते इस ओर निकल जाएँ
यह नालियाँ धारावी(29) की स्लम की ओर जाती है
*शरद कोकास*
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*कविता में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ व ऐतिहासिकता*
*26.हूरो गिलमाँत* -इस्लामिक मान्यता के अनुसार परियाँ और वे बालक जो बहिश्त में धर्मात्माओं की सेवा और भोग के लिए रहते हैं।
*27.पुल सिरात* – इस्लामिक मान्यता के अनुसार जन्नत और दोज़ख के बीच बाल से भी बारीक एक पुल जिसे सफलता पूर्वक पर कर लेने पर ही देह जन्नत में पहुँचती है ।
*28.लास वेगास,बैंकाक* – जुआ ,खानपान,दैहिक सुख के लिए प्रसिद्ध शहर ।
*29.धारावी* – एक लाख से ज़्यादा आबादी वाली मुंबई की प्रसिद्ध झोपड़पट्टी।
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शरद कोकास