नन्द कश्यप की कविता

मोहब्बत तो इन्सान की फितरत है
वर्ना वह जन्नत से धरती पर धकेला न जाता
न जाने कितने फिरोन, राजा, महाराजा
नफ़रत की फ़लसफ़ा से खुदा बनने की कोशिश किए
लेकिन इंसान का दिलफिदा रहा मोहब्बत के किरदारों पर
फिर वो लैला-मजनू शीरी-फरहाद
हीर-रांझा या जूलियट-रोमियो हों
जो इंसानियत से मोहब्बत करता है
वह दूसरों का हक़ कैसे छीन सकता है
समाजवाद तो मोहब्बत से लबरेज़ इंसान लाएंगे
उसके लिए किसी तानाशाह की जरूरत नहीं
ऐ नफ़रत के पैरोकार तानाशाहों
इंसानों के हत्यारे, हथियारों के सौदागरों
वोट पाने तुम अंबेडकर का नाम लेते हो
और सत्ता में आते ही संविधान की धज्जियां उड़ाते हो
और तुम्हें जब इंसान दिखना होता है
तुम बापू के साबरमती आश्रम जाते हो
या फिर
मोहब्बत के प्रतीक
ताजमहल के सामने फोटो खिंचवाते हो
ऐ तानाशाहों तुम समझ ही नहीं सकते
कि
जो इंसानियत से प्रेम करते हैं
वही अन्याय अत्याचार के खिलाफ लड़ते शहीद होते हैं,
और तुम्हें नेस्तनाबूद कर
बेहतर दुनिया बनाते हैं