आज प्रस्तुत हैं पंजाबी के अग्रणी कवि *भूपिंदरप्रीत* की कुछ पंजाबी कविताओं के अनुवाद। कविता के साथ अनुवाद पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
अनुवाद : पंजाबी कवि बिपनप्रीत और हिन्दी कवि रुस्तम द्वारा
साभार समालोचन से
⭕ दस्तक के लिए प्रस्तुति : अंजू शर्मा
1
|| छोटी सी बात ||
एक पीला पत्ता
कश्ती की तरह हिल रहा है
सूरज की
हल्की पीली रोशनी को
अपने अन्दर समेट रहा है
अभी-अभी बारिश थमी है
मेरी छत पर समुद्र है
और सूरज आज यहीं पर डूबेगा.
2
|| ख़ाली जगह ||
रोज़ अपने अन्दर मैं एक जगह ख़ाली करता हूँ
फिर रखता हूँ वहाँ
पक्षियों के लिये दाना, अपने लिए शब्द, खुरदरी ज़मीन के लिए पत्ते
फिर उस भरी जगह में बची
ख़ाली जगह को देखता हूँ
ताकि
सब विसंगतियों के बावजूद जीवन जी सकूँ
मौत को
एक विराम चिन्ह बनाकर.
3
|| नैपकिन ||
महफ़िल में बैठा
तुम्हें एक नैपकिन पर लिख सकता हूँ ?
शोर बहुत तीखा है
तुम्हारी स्मृतियों को काटकर
कोई आवाज़
पार नहीं जा सकती
यहाँ हर जगह भरी हुई है
सिर्फ़ एक नैपकिन ख़ाली है
जिस पर मैंने तुम्हें लिख दिया है
जब भी बासी होने लगूँ
मक्खियाँ मुझ पर भिनभिनाने लगें
मुझे इस से ढक देना.
4
|| उत्सव ||
क्या बज रहा है घंटियों जैसा
मेरा कमरा कोई मन्दिर या गिरजाघर नहीं
बारिश नहीं हो रही
लेकिन होने की आहट
शीशे पर छलछला रही है
यह उस उम्मीद की तरह है
जो टूटकर भी
अपना प्रतिबिम्ब छोड़ जाती है
इस समय
अकेला होना ही मेरा उत्सव है
देख रहा हूँ हर वस्तु को
अकेली होते
हैरानी है
कि मैं अन्दर हूँ
और बाहर मिट्टी में से आ रही है
मेरे जज़्ब होने की आवाज़.
5
|| जनवरी ||
रोशनी
बेसुध पड़ी है बर्फ़ पर
निश्छल
अपनी पारदर्शिता को
शीत कणों की तासीर में पिघलाती
बादलों को देख
मृत्यु की तरह छटपटाती
हवा और काँच से मिलकर
देह में छुपे सात रंगों को बनाती
बेसुधी में कैसे टूटते हैं धरातल
बिन आवाज़
बर्फ़ को बताती
जनवरी की नग्न रोशनी.
6
|| सन्तुलन ||
अचानक मुझे लगा
वहाँ कोई है…पहाड़ी के पीछे
मैंने बहती हवा में पत्तों की सरसराहट सुनी
और देखने चल पड़ा
कौन है
मेरे सिवा
वहाँ ज़मीन पर सिगरेट के कुछ जले हुए टुकड़े पड़े थे
पवित्र किताब और अधजली तीली
टूटी हुई टहनी थोड़ी राख और ख़ाली पन्ना
कौन हो सकता है
इतना सन्तुलित
लेकिन वहाँ कोई नहीं था
सारा सामान एक स्टिल पेंटिंग की तरह पड़ा था
मैंने पूरे जंगल की खामोशी में झाँका
और चल पड़ा ‘उसे’ ढूँढने
स्टिल पेंटिंग में से गुज़रता हुआ.
7
|| छुपी रात का संगीत ||
यह घास में छुपी वह रात है
जिसने कई पहेलियाँ हल कर दी हैं
एक दरख़्त की टहनियाँ
वायलिन के धनु की तरह हिल रही हैं
एक गैरहाज़िर ऊँगली सब से श्रेष्ठ धुन निकाल रही है
इस रात जब कि
पौधे और कीड़े हवा का सन्तुलन तोड़ते जीवित हैं मिट्टी में
मेरे जैसा कोई
कामना और बेचैनी से भरा
बेजान सड़क को चूमता है
सन्नाटे में दस्तक देने के अन्दाज़ में हाथ उठाता है
तेज़ बौछार में से
पत्तों की आवाज़ सुर उठाती है
और रात भर जाती है
छिप-छिप कर कंपोज़ हो रहे नये गीत से.
8
|| कलाई घड़ी ||
कलाई घड़ी
भला कितनी जगह घेरती है
सँभाल लो
माँ की आखिरी यह निशानी
समय के लम्बे अन्तराल में से निकलते
पिता ने कहा
और खामोश हो गया.
9
|| माँ बिन पिता ||
ख़ाली-ख़ाली आँखों से पिता देखता है
माँ बिन ख़ाली कमरा
कमरे के ख़ाली स्थान में दिखता है उसे
एक और स्थान
जहाँ माँ देखा करती थी
माँ वाले ख़ाली स्थान में देखने के लिए
देख रहा है पिता
वह माँ का चश्मा और सिलाइयां सम्भालता हुआ कहता है —
मेरे कमरे में से उसकी तस्वीर उठा दो
कमरा भरा हुआ रहने दो
उसकी ख़ाली आँखों से.
10
|| मैं इतना जालसाज़ क्यों हूँ ||
माँ समुद्र थी
देखा पिता को एक दिन मैंने उसके
तट पर नहाते
पिता डूबे हुए थे
कमर तक पानी में
और माँ बार-बार उछाल रही थी
अपना समुद्र
उनकी तरफ़
जब पिता लहरों में नहीं फंसे
माँ एकदम समुद्र से
जाल में बदल गयी
उस दिन से जाना
मैं इतना जालसाज़
क्यों हूँ.
भूपिंदरप्रीत
अनुवाद : पंजाबी कवि बिपनप्रीत और हिन्दी कवि रुस्तम द्वारा
साभार समालोचन से
⭕ दस्तक के लिए प्रस्तुति : अंजू शर्मा