5.03.2019 भैरमगढ ,बस्तर .
बस्तर में सरकार के हाथों गरीब आदिवासी ग्रामीणों पर लगातार चलते हुए मनावाधिकार हनन की लड़ी में दिनांक 7 फरवरी 2019 अबुझमाढ़ पहाड़ी पर स्थित तड़ीबल्ला, भैरमगढ़ तहसील, बीजापुर पर हुई घटना एक और घीनोनी कड़ी है. गौरतलब है कि इस घटना को सरकार और गृह मंत्री सैनिको की एक बड़ी जीत के रूप में दिखा रहे है, लेकिन इस घटना पर ज़रा सी भी पूछताछ या कार्यवाही करे तो एक बेहद ही खौफनाक हकीकत सामने आ पड़ती है.
हम बस्तर के कई गाँव के आदिवासी सरकार के झूठ का पर्दाफाश कर अपनी कहानी सुनाने के, और न्याय की गुहार लगाने के लिए दिनांक 5.03.2019 को भैरमगढ़ में एकत्र हुए है.

हम यह स्पष्ट कर दे कि जिन दस लोगों को सुरक्षा बल ने जान से मार दिया गया है उनमें से कोई नक्सली नहीं था और घटना के दिन कोई मुठभेड़ नहीं हुई थी. मारे गए ग्रामीण में अत्यधिक हमारे बच्चे हैं, जो कि उस दिन खेल कूद के लिए एक जुट हुए थे. जब सुरक्षाबल की फ़ोर्स घटना स्थल पर पहुची तो बिना कोई भी चेतावनी दिए फ़ोर्स ने एकत्र ग्रामीणों पर ताबड़तोड़ फायरिंग करना चालू कर दिया जिस कारण भगदड़ मच गई. जिनको गोली लगी, उनके साथ फ़ोर्स ने जानवरों से भी बत्तर सुलूक किया. 2 लड़कियों के साथ फ़ोर्स ने बलात्कार किया. उनमें से एक 12 साल की बच्ची के साथ फ़ोर्स ने बलात्कार के अलावा, घोर शारीरिक और लैंगिक हिंसा भी करी और उसके नाक और गुप्तांगो को काटा. सभी मृतकों के साथ फ़ोर्स ने घोर अत्याचार किया, यह जानते हुए की सभी आम ग्रामीण है. इसके अलावा जो भी कपडे, बर्तन, इत्यादि घटना स्थल पर मौजूद थे, उन सभी को फ़ोर्स ने जला दिया.
हम जानना चाहते है कि क्यों जब भी गश्त हमारे गाँव में आती है तो इस तरह का सुलूक हमारे साथ करती है. उनको यह आदेश कहाँ से दिए जा रहे है? हर दिन आदिवासी जनता को बिना किसी कारण, बिना किसी सबूत के गिरफ्तार करते है, उनको कैंप और थाना ले जाकर कई दिन रखते है और मारते पीटते है, उनके परिजनों को उनके बारे में खबर देने से मना करते है, उसके बाद या तो छोड़ देते है या झूटे नक्सली प्रकरणों में गिरफ्तार कर लेते है! किसके आदेश से आदिवासी महिलाओं के शरीर को फ़ोर्स अपनी जागीर मानते है, उनके साथ छेड़-छाड़ और यौन हिंसा करते है? गर्भवती महिलाओं, बच्चियों, और दूध पीलाती महिलाओं को भी फ़ोर्स वाले नहीं बक्शते है. और सफाई में जातिवादी बातें कहते है जैसे कि आदिवासी महिलाओं के शरीर से बदबू आती है, उनको कौन छूएगा! यह कैसे आदेश है जिनके तहेत सैकड़ों बेगुनाह आदिवासी लोगों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया है, यह सिलसिला चलता आ रहा है और आदिवासी लोग बस्तर में लगातार मौत के साए में अपना जीवन जी रहे है. हमारे घरों को लूटकर जला दिया जाता है, हमारे जमा किये हुए पैसे, कपडे, धन, फसल, भेढ़-बकरी, मुर्गी, पालतू जानवर और समस्त जमा-पूँजी भी क्या सरकार को रास नहीं आती? यह कैसा सैनिकरण है जो कहने के लिए बस्तर की जनता की सुरक्षा के लिए है पर हर दिन हमको ही खौफ में जीने से मजबूर करता है. यह सैनिक कैसे हमारे हुए जब इनको देखकर हम अपना सब कुछ छोड़कर भागने पर मजबूर हो जाते है? हमने जो खोया है, जो ज़ुल्म सहे है, और हमको जो दर्द सरकार ने दिया है, वह तो असीम है और उसका भुगतान कर पाना असंभव है, लेकिन आज सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि हमारे सवालों का जवाब दे और कुछ हमको न्याय दे! हमारी निम्न मांगे है सरकार से: