बिलासपुर के त्रिवेणी भवन में वेस्ट बंगाल और बिहार के मजदूर लगभग 2 महीने से फंसे हुए हैं. सीजी बास्केट को खबर मिली कि आज बस से उन्हें उनके घर भेजा जा रहा है.

घर भेजने के लिए इनमें से हर मजदूर से 3000 रूपए लिए जा रहे हैं. वेस्ट बंगाल जा रही इस बस का किराया 150000 (डेढ़ लाख़) रूपए है और ये पूरा पैसा इन्हीं मजदूरों से वसूला जा रहा है.
मजदूरों ने बताया कि जो लोग घर से पैसे मांगा सकते थे उन्होंने मांगा कर दे दिए हैं. जो मजदूर पैसे नहीं मांगा पा रहे थे उनसे कहा गया है कि घर वालों को पैसों का इंतज़ाम करने को कह दो, जैसे ही बस बंगाल अपने ठिकाने पर पहुचेगी तब तुम्हे पूरे पैसे देने होंगे.
ये बात ख़ुद मजदूरों ने हमें बताई है. देखिए वीडियो
ये समाचार लिखने वाला मैं, छत्तीसगढ़ का ही रहने वाला हूं. यहाँ फंसे बंगाल के इन मजदूरों से लगातार मिलता रहूं, मैं खुद उन्हें भरोसा दिलाया करता था कि थोड़ा इंतज़ार कीजिये छत्तीसगढ़ की सरकार आपकी मदद ज़रूर करेगी.
आज जब हम उनसे मिलने पहुचे तो मालूम हुआ कि उन्हें घर भेजने के लिए उन्हीं से डेढ़ लाख रूपए मांगे गए हैं. शर्म से मेरा सर झुक गया. अब छत्तीसगढ़ की पहचान बाहर से आए ग़रीब मजदूरों से पैसा ऐंठने वाले राज्य की बन गई है. दिहाड़ी मजदूरों के लिए इतना पैसा जमा कर पाना बहुत ज़्यादा बड़ी बात है.
अब सवाल उठता है कि सरकारी ख़र्च से इन मजदूरों के लिए बस की व्यवस्था क्यों नहीं की गई ? क्या छत्तीसगढ़ सरकार के पास बिलकुल भी पैसे नहीं हैं ?
खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बताया है कि CM केयर फण्ड में दानदाताओं द्वारा दिए गए भरपूर पैसे जमा हैं. आंकड़ा देखिए.
24 मार्च से लेकर 7 मई तक मुख्यमंत्री सहायता कोष में विभिन्न दानदाताओं के द्वार कुल 56 करोड़ 4 लाख 38 हज़ार 815 रूपए की राशि प्राप्त हुई है
जिसमें से 10 करोड़ 25 लाख 30 हज़ार ररुपयों को सभी जिलों में बांटा गया है.
आंकड़ों के अनुसार सरकार के पास भी पैसा है और जिला प्रशासन के पास भी. फिर इन मजदूरों से तीन तीन हज़ार रूपए क्यों मांगे जा रहे हैं और किसके कहने पर मांगे जा रहे हैं.
जिस भवन के मजदूरों से पैसे मांगे गए हैं उसकी व्यवस्था के लिए नगर निगम की तरफ से सुरेश शर्मा नाम के अधिकारी को नियुक्त किया गया है. इस बारे में हमने उनसे जानकारी लेनी चाही. कई कोशिशों के बाद भी उन्होंने फ़ोन नहीं उठाया.
चूंकि ये सारा इंतज़ाम नगर निगम के अंतर्गत आता है इसलिए हमने निगम आयुक्त प्रभाकर पांडे से भी फ़ोन पर संपर्क करना चाहा. कई बार फ़ोन लगाया पर उन्होंने भी फ़ोन नहीं उठाया.
बिलासपुर जिला कलेक्टर संजय अलंग ने कहा कि “लगातार सरकार की तरफ से बसें चलाई जा रही हैं पर मजदूरों से पैसे लिए जाने के बारे में मुझे जानकारी नहीं है”
अब सवाल ये है कि जब कलेक्टर साहब खुद कह रहे हैं कि सरकार की तरफ से रोज़ बसें चलाई जा रही हैं तो फिर सरकारी भवन में ही रुकवाए गए इन मजदूरों के लिए प्राइवेट बसों की सौदेबाज़ी कौन कर रहा है. और इसकी खबर सरकारी अधिकारियों को क्यों नहीं है.
मजदूरों से पैसा मांगने की बात मीडिया को पता लगने के बाद इस बस का जाना रद्द कर दिया गया है. डेढ़ लाख रूपए किराए की ये बस यदि बिना किसी झोलझाल के चलाई जा रही थी तो फिर मीडिया को पता चलने के बाद इसे रद्द क्यों कर दिया गया ?
इससे ये तो बिलकुल साफ़ हो जाता है कि घर छोड़ने के नाम पर मजदूरों से छत्तीसगढ़ में पैसे ऐंठने की कोशिश की जा रही है.
ये कहना थोड़ा कठिन है कि कमीशनखोरी से कितनों की जेबें भरी जाएंगीं.
बिलासपुर ज़िला प्रशासन को मुख्यमंत्री राहत कोष से जो पैसे मिले हैं उससे वेस्ट बंगाल के इन मजदूरों को उनके घर भेजने की व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है ? ये पैसे आखिर कहाँ ख़र्च किए जा रहे हैं. क्योनी मजदूरों के खाने पीने का इंतज़ाम तो NGO, स्वयंसेवी संस्थाएं और अलग अलग समूह मिलकर कर रहे हैं, कोविड-19 अस्पताल भी एक कंपनी के CSR फण्ड से बनाया गया है. तो मिले हुए पैसों को मजदूरों को वापस भेजने के लिए क्यों नहीं ख़र्च किया जा रहा है?