
पहली कविता
कौसर बानो का अजन्मा बेटा – एक
पृथ्वी पर मनुष्य के जन्म लेने की घटना
इतनी साधारण है अपनी परम्परा में
कि संवेदना में कहीं कोई हस्तक्षेप नहीं करती
इसके निहितार्थ में है इसकी असामान्यता
जो ठीक उस तरह शुरू हुई
जैसे कि एक जीवन के अस्तित्व में आने की शुरुआत होती है
अपनी देह के पूर्ण होने के शिल्प में
जीवन के लिये आवश्यक जीवद्रव्य लिए
बस कुछ ही दिनों बाद बाहर आना था उसे
अपनी माँ कौसर बानो की देह से
और सृष्टि की इस परम्परा में
अपनी भूमिका का निर्वाह करना था
छोटे – छोटे ऊनी मोज़ों व दस्तानों के साथ
बुना जा रहा था उसका भविष्य
पकते हुए गुड़ में सोंठ के लड्डुओं के स्वप्न तैर रहे थे
गर्भवती कौसर बानो की तरह
इठलाती हुई चल रही थी बसंती हवा
उसमें घुसपैठ करने की कोशिश में थीं कुछ अफवाहें
भौतिक रूप से जिन अफवाहों में
कुछ जली हुई लाशों की गन्ध थी
रेल के थमते हुए पहियों से
एक चीख निकलकर आसमान तक पहुंची थी
जिसमें दब कर रह गए थे पीर-पैगम्बरों के सन्देश
और सृष्टि के कल्याण के लिए रचे गये मंत्र
विवेकशून्य भीड़ के मंच पर मंचित
नृशंसता के प्रदर्शन से बेख़बर कौसर बानो
इमली की खटाई चखते हुए
गर्भ में करवट लेते बेटे से
एक तरफा बातें करने में मशग़ूल थी
पृथ्वी पर चल रही इस हलचल से अधिक
उसे परवाह थी
अपने जिस्म पर उग आई इस पृथ्वी की
वहीं बृह्मांड में कीड़े-मकोड़ों की तरह रेंगने वाले जीव
इस पृथ्वी को कई हिस्सों में बाँट देने के लिये बेताब थे
मातृत्व की गरिमा और
मानवता के इतिहास की अवमानना करते हुए
उन्माद की एक लहर उठी
दया , रहम , भीख जैसे शब्दों की धज्जियाँ उड़ाते हुए
हवा में एक तलवार लहराई
और क्रूरता का यह अध्याय लिख दिया गया
अगले ही क्षण लपटों के हवाले था
पृथ्वी , जल ,तेज , वायु और आकाश में लिथड़ा
आदम और हव्वा के जिगर का वह टुकड़ा
यह हमारी नियति है कि
कल्पना से परे ऐसे दृश्यों को देखने के लिए
हम जीवित हैं इस संसार में
कौसर बानो के उस बेटे की नियति यही थी
कि यह सब देखने के लिए
उसने इस संसार में जन्म नहीं लिया
दूसरी कविता
कौसर बानो का अजन्मा बेटा – दो
कौसर बानो का अजन्मा बेटा
हमारा ही कोई रिश्तेदार था दूर का
वह भी उसी माँ का बेटा था
जिसकी आदिमाता
हज़ारों साल पहले
आफ्रिका के जंगलों से आई थी
उसके भीतर भी था
वही माइटोकोंड्रिया जीन
जो उस आदिमाता से होते हुए
उसकी माँ कौसर बानो तक पहुंचा था
आदिमानव से आधुनिक कहलाने की यात्रा में
बेटियों की भ्रूण हत्या पर गर्व करने वाली
मनुष्य प्रजाति के लिये यह बात
भले ही गले से न उतरे
भले ही वह इसे जायज़ सिद्ध करने के लिए
बदला , अपमान , प्रतिक्रिया जैसे शब्द चुन ले
कौसर बानो के अजन्मे बच्चे की हत्या के लिए
उसे क्षमा नहीं किया जा सकता
अपना अपराध बोध कम करने के लिये
कहा जा सकता है कि अच्छा हुआ
जो उसने पाप के बोझ से दबी
इस धरा पर जन्म नहीं लिया
वरन वह क्या देखता
चिता की तरह राख हो चुकी बस्तियाँ
जले हुए बाज़ारों
टूटे हुए मन्दिरों- मस्जिदों ,विहारों और मज़ारों के सिवा
अपनी आँख खुलते ही उसे दिखाई देते
कीचड़ से अटे घरों के खंडहर
जिनमें पानी भरकर करंट प्रवाहित किया गया था
ढूँढा गया था एक नायाब तरीका
इंसान की नस्ल खत्म करने का
वह किस चाची या मौसी की गोद में खेलता
खोल दिए गए थे जिनके जिस्म
सीपियों की मानिन्द
और स्त्रीत्व का मोती लूटकर
जिन्हें चकनाचूर कर दिया गया था
शायद ही नसीब होता उसे
अपने बदनसीब चाचा का कंधा
जिसकी नज़रों के सामने
उसकी बारह साल की बच्ची की योनि में
सरिया घुसेड़ दिया गया
बस बहुत हो चुका कहकर
कान बन्द कर लेने वाले सज्जनों
कविता में वीभत्स रस या अश्लीलता पर
नाक-भौं सिकोड़ने वाले रसिक जनों
इस आख्यान को पूर्वाग्रह से ग्रस्त न समझें
सिर्फ एक बार कौसर बानो की जगह
अपनी बहन या बेटी को रखें और महसूस करें
अतिशयोक्तियों से भरी हुई नहीं है
कौसर बानो के अजन्मे बेटे की दास्तान
यह कदापि सम्भव नहीं है फिर भी
क्रिया और प्रतिक्रिया की इस दुनिया से दूर
फिर कहीं जन्म लेने की कोशिश में होगा
वह अजन्मा देवशिशु
देवकी की आठवीं बेटी की तरह
कंस के हाथों से निकल कर
आकाश में अट्टहास कर रहा होगा
या जन्म मरण के तथाकथित बन्धन से मुक्त होकर
देख रहा होगा अपनी उन बहनों को
जो अभी भी टूटे घर के किसी कोने में
डर से छुपी बैठी होंगी
अपनी गीली शलवारों में
पेशाब के ढेर के बीच
अभी भी बिखरे होंगे जूते -चप्पल गलियों में
पिघली हुई दूध की बोतलें और खिलौने
जली हुई साइकिलें और औज़ार
खंडहर के ढेर पर खड़े अभी हँस रहे होंगे
हिटलर के मानस पुत्र
वहीं कहीं अभी समय कसमसा रहा होगा
एक दु:स्वप्न से जागने की तैयारी में
धर्म की परिभाषा को
विकृत करने वाली इस सदी में
समय सबक ले रहा होगा मनुष्यों से
अभी फिर कहीं किसी कौसरबानो के गर्भ में
पल रहा होगा कोई अभिमन्यु
अन्याय को इतिहास में दर्ज करने की अपेक्षा में
इस दुष्चक्रव्यूह को
अंतिम बार ध्वस्त करने की प्रतिज्ञा करता हुआ
तीसरी कविता
बुरे वक़्त में जन्मी बेटियाँ
बेटियाँ जो कभी जन्मीं ही नहीं
वे मृत्यु के दुख से मुक्त रहीं
जन्म लिया जिन्होंने इस नश्वर संसार में
उन्हें गुजरना पड़ा इस मरणांतक प्रक्रिया से
अस्तित्व में आने से लेकर
अस्तित्वहीन हो जाने की इस लघु अवधि में
एक पूरी सदी उनकी देह से गुज़र गई
किसी को पता ही नहीं चला और वे
दाखिल हो गईं समय के इस अमूर्त चित्र में
शायद ही आ पातीं वे कभी समकालीन कविता में
यदि उनके जिस्म से एक एक कपड़ा नोचकर
जलते टायरों की माला उन्हें न पहनाई गई होती
शायद ही वे आ पाती कभी राष्ट्रीय समाचारों में
अगर उनकी मृत देहों से स्तन अलग करने और
उन पर जुगुप्सा भरा वीर्यपात करने की
बदतमीज़ियाँ नहीं की जातीं
अफसोस कि उनमें
भारतीय सैनिकों की लाशों के साथ
बदसलूकी पर आक्रोश जताने वाले लोग भी थे
पुरुषों के पजामे उतरवाकर धर्म जानने
और उनकी ज़िन्दगी का फैसला करने का तरीका
वे पीछे छोड़ चुके थे
इस नरसंहार में इस बात की कोई दरकार न थी
कि जिसे मारा जाना है उसका धर्म क्या है
उनका सबसे प्रिय शिकार थीं
पीठ पर ज़िम्मेदारी का बोझ लिए
स्कूल जाने वाली नन्हीं नन्हीं बच्चियाँ
नरपिशाचों की नज़र पड़ते ही
जो औरतों में तब्दील हो गईं
कैलेंडर से अलग होती तारीखों के ढेर में
गुम हो गईं वे बच्चियाँ
और खुद पर हुए ज़ुल्म के बारे में
बयान देने के लिये जीवित नहीं बचीं
धर्म के तानाशाहों द्वारा
उनके नग्न शरीरों पर खड़े होकर किए गए अट्टहास
अभी थमे नहीं हैं
भय का भयावह दैत्य
फिलहाल राहत का मुखौटा धारण किये हुए है
अभी आयोगों के पालने में
न्यायिक प्रक्रिया अंगूठा चूस रही है
ईश्वर की अदालत में प्रस्तुत करने के लिये
तर्क जुटाये जा रहे हैं
मनु से लेकर न्यूटन तक तमाम ऋषि
मुगलों व अंग्रेज़ों की बसाई दिल्ली में
फिर किसी राज्याभिषेक की तैयारी में हैं
अभी राजनीति की बिसात पर
अगले कई दशकों की चालें सोची जा चुकी हैं
अभी कई मोहरे दाँव पर लगे हैं
धर्मप्राण राजाओं और वज़ीरों को बचाने के लिए
वहीं तुलसी की क्षेपक कविता
ढोल गँवार शूद्र पशु नारी
चरितार्थ की जा रही है
ताड़ना के अंतिम बिन्दु पर स्थापित
इस आधी दुनिया के लिये
बहुत दुख से कह रही हैं प्राध्यापिका रंजना अपनी छात्राओं से
तुम्हे तो पढ़ने-लिखने का मौका मिल गया मेरी बच्चियों
शायद तुम्हारी बेटियों या पोतियों को न मिल पाये
बावज़ूद इसके कि जनतंत्र की इस विशाल खाई में
जहाँ नैतिकता , ईमान , सद्भावना और समानता की लाशें
अंगभंग की अवस्था में बिखरी पड़ी हैं
गिद्धों की नज़र से बचती कुछ बेटियाँ
धीरे धीरे बड़ी हो रही हैं