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तुम्हारे प्रेम में ..6..अब कभी – कभी अकेले कुछ किताबें ले किसी एकांत जगह चली जाती हूँ…रोशनी.

रोशन बंजारे ” चित्रा’

अब कभी – कभी अकेले कुछ किताबें ले किसी एकांत जगह चली जाती हूँ…अब रास्ते अच्छे लगते हैं…यूँ कि मंज़िल कहाँ है जानती ही नहीं…आज रेलवे के पास एक खाली जगह पर बैठी थी…तुम वहां भी थे… उस रास्ते से हम गुज़रे थे साथ…
उस मंज़र को याद कर रही थी…मुस्कुरा रही थी…जलेबी भी खा रही थी, और ये याद कर रही थी कि, तुम जब मुझसे पहली दफा मिले थे, तब ढेर सारी जलेबियाँ लेकर आये थे… उसे मेरी सहेलियों ने भी खाया था….

आज गुजरात फाइल्स में गुजरात के दंगो को पढ़ रही थी…गुजरात के दंगों में जो फर्जी एनकाउंटर्स हुए, एक पल के लिए लगा कि तुमपर हुए…खुद को रोका…ये बात ज़हन में आई ही क्यों?? झुलसते गुजरात की कहानी सुन लगा कहीं अगर तुम्हारे शहर में ये सब हो गया तो…. फिर मन को रोका…छी ये क्या सोच रही हूँ ….आज कल जिस तरह कोई एक धर्म निशाने पर है….देख कर डर लगता है..

पर ये भी तो सच है न, कि जो लोग मारे गए होंगे…उनसब को भी किसी ने प्रेम किया होगा…और वे भी किसी के प्रेम में रहे होंगे… अपने प्रेम को हमेशा के लिए खो देने का दर्द….उस दर्द की कल्पना भी नहीं कर सकती मैं…और करना भी नहीं चाहती…


सुनो,तुम अपना ध्यान रखना….लड़ना छोड़ना नहीं पर फिर भी अपना ध्यान रखना…इतना याद रखना कि दूर बैठी मैं तुम्हारी सलामती से जिंदा हूँ..

सुधा भारद्वाज जी की गिरफ्तारी को एक साल होने वाले हैं…. ये सोच कर आंदोलन में शरीक होने की सोच रही हूँ, कि अगर तुम्हें कोई गिरफ्तार कर ले तो….

बस इसी घबराहट के कारण इस व्यवस्था से लड़ना चाहती हूं…अगर कोई भीड़ मिलकर तुम्हें कोई नुकसान पहुंचा दे तो…तब मैं क्या करूंगी…

इसलिए हर उस इंसान के साथ खड़े होने की कोशिश करती हूँ जिसे ज़रूरत हो …

आज आज़ादी का उत्सव मनाया गया…पर तुम्हें तो पता है न कि हम आजाद नहीं हैं….तुम उसी के लिए संघर्ष कर रहे हो…तुम्हें लड़ता देख मुझमे कितनी हिम्मत आती है तुम जानते नहीं….तुमसे सीखती हूँ हर वक़्त…
लेकिन इन सब के परे फिर से अपना ध्यान रखना….और बस…अपना ध्यान रखना….याद रखना कि मैं ज़िंदा हूँ तुम्हारे प्रेम में..


– —–रोशनी बंजारे “चित्रा”

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