
ये खबर ख़ास इसलिए नहीं है कि किसी ने ग़रीब बच्ची की पढ़ाई का ख़र्च उठाता है, बल्कि ये खबर ख़ास इसलिए है क्योंकि एक लड़की की पढ़ाई का ज़िम्मा किसी और ने नहीं, पुलिस वालों ने लिया है.
ये बिलासपुर का सिटी कोतवाली पुलिस स्टेशन है. थाना प्रभारी हैं मो. कलीम खान
लॉक डाउन के नियमों कापालन करवाने के लिए सड़कों पर डंडे रसीदती पुलिस, कभी मुर्गा बनवाती कभी फूल माला पहनाती, कभी बुज़ुर्ग को इतना पीटती के हाथ न उठे, और कभी हाथ जोड़कर आरती उतार कर निवेदन करती के प्लीज़ घरपे रहिए…पुलिस के कई चेहरे लॉक डाउन ने दिखाए हैं.
पुलिस के लिए एक आम धारणा ये भी है कि वो किसी के सगे नहीं होते. पर धारणाएं बदलती हैं पुराने चरित्र टूटते हैं नए गढ़े जाते हैं.
कल का वाकया कुछ इसी तरह का था
गोलबाजार के पास गोंड़पारा इलाके में एक एक बच्ची का जन्मदिन था. बच्ची पिता के साथ नहीं हैं. वो अपनी नानी के घर पर रहती है. लड़की के हीरो होते हैं उसके पिता…गर साथ हों तो!!!
एक मामा हैं जो ऑटो रिक्शा चलाते हैं. मामा घर के अकेले कमाने वाले हैं. लॉकडाउन में सारा काम ठप्प पड़ा है. बड़ों की परेशानियां तो खैर हम समझ लेते हैं पर ऐसे समय में बच्चों की मनोस्थिति समझ पाना थोड़ा मुश्किल ही है. ख़ास तौर से तब, जब कमाई भी बन्द हो, स्कूल भी बन्द हो, दोस्त भी नदारद हों और ऐसे में बर्थडे आ जाए.
जन्मदिन का तोहफा देने के लिए उस बच्ची के पिता उसके साथ नहीं हैं. होते तो शायद लॉक डाउन में भी उसके लिए कहीं से नई सायकल जुगाड़ लाते या शायद पिठइय्या पाकर उसके साथ खेलते…पिता की ये कमी, पूरी तो खैर कोई नहीं कर सकता पर सिटी कोतवाली पुलिस ने जो किया है उससे वो पिता की भूमिका में ज़रूर आ गए हैं.
कोतवाली सीएसपी निमेश बरैया, थाना प्रभारी कलीम खान, प्रशिक्षु डीएसपी ललिता मेहर पूरी टीम के साथ गोड़पारा में बच्ची के घर गए, उसके साथ उसका जन्मदिन मनाया.
थाना प्रभारी कलीम खान और सीएसपी निमेश बरैया ने घोषणा की है कि वे इस बच्ची के कक्षा 12वीं तक की पढ़ाई का पूरा ख़र्च उठाएंगे.
ये पुलिस का वो मानवीय पहलु है जो उसकी टिपिकल लट्ठमार इमेज को तोड़ता है. ये इमेज टूटनी ही चाहिए. परित्राणाय साधुनाम के लिए ये होना ज़रूरी भी है. अंग्रेजों के लिए अस्तित्व में आई पुलिस को किसी दिन तो जनता के लिए उत्तरदाई होना ही होगा.
जियो कोतवाली पुलिस