27 -01 -2019
आज दिल्ली के साउथ ईस्ट जिले के निवासियों ने जिंदल कचरा प्लांट 16 मेगा वाट ( वेस्ट टू एनर्जी प्लांट, ओखला) के खिलाफ फिर सड़क पर निकल कर यह बता दिया है कि वह प्रदूषित हवा को नहीं सहेंगे। लोग नारे लगा रहे थे ‘साफ हवा हमारा अधिकार है, अपना अधिकार हम लेकर रहेंगे’, ‘जहरीला प्लांट बंद करो’।
आज लोगों ने 12:00 बजे से 2:00 बजे तक सड़कों पर उतर कर पहले मानव श्रृंखला बनाई और उसके बाद सुखदेव विहार से निकल कर अलग-अलग इलाकों में पहुंचे और जहरीले धुंए व सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त इस जहरीले प्रदूषण के खिलाफ अपनी आवाज उठाई।
सुखदेव विहार, जसोला हाइट्स और जसोला के दूसरे पाॅकेट्स, गफ्फार मंजिल, हाजी कालोनी, जोहरी फॉर्म, ओखला विहार, शाहीन बाग, अबुलफजल, बटला हाउस, मसीहगढ़, बदरपुर, मदनपुर खादर तथा दिल्ली के अन्य रिहायशी इलाकों से सैकड़ों की संख्या में स्त्री-पुरुष-बच्चे मानव श्रृंखला और उसके बाद रैली में शामिल हुए।
यह मानव श्रंखला सुखदेव विहार से लगे हुए कूड़े से बिजली बनाने वाले जिंदल कंपनी के 16 मेगावाट प्लांट और उसको 40 मेगावाट में तब्दीली की कोशिश के खिलाफ आयोजित की गई थी। लोगों में इस बात को लेकर के भारी आक्रोश है.
ज्ञातव्य है की लोगों के भारी विरोध के कारण प्रशासन व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को 16 जनवरी को इस विस्तार के लिए आयोजित जन सुनवाई रद्द करनी पड़ी थी।
हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि पर्यावरणीय जनसुनवाई एक अत्यंत महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकार है जहां लोग अपनी बात रख पाते हैं किंतु देशभर का अनुभव यही बताता है कि सरकार किसी तरह जनसुनवाई की रस्म पूरी करती है और फिर परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए कागजी कार्रवाई करती रहती है। इसलिए जब 16 मेगावाट की परियोजना कि बुरे असर को दूर नहीं किया गया और ना ही इस बारे में कोई गंभीर पहल नजर आती है, तब अतिरिक्त 24 मेगावाट बढ़ाने के क्या दुष्परिणाम होंगे? 16 मेगावाट प्लांट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है फिर इसे 40 मेगावाट करने की इतनी जल्दी क्यों? क्या कभी ये आकलन किया गया की हरित पट्टी होने व् इतनी घनी आबादी के बीच इस प्लांट क्यों रखा गया ?
दिल्ली सरकार व केंद्र सरकार भले ही प्रदूषण के खिलाफ काम के दावे करती रहें, घोषणा करती रहें, सुप्रीम कोर्ट के अंदर में अनेकानेक मुकदमों में ऑड-ईवन, पराली जलाने की बात से लेकर के अंतरराष्ट्रीय स्तर तक हम प्रदूषण रहित शहर बनाने की बात करें, स्मार्ट शहरों की बात कर रहे हैं। मगर देश की राजधानी के लाखों लोग जो जहरीली हवा का झेल रहे हैं उसके लिए केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों की जिम्मेदार है।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के फैसले में इस कचरा से बिजली प्लांट की हर महीने तीन सदस्यों की समिति द्वारा निगरानी विजिट होनी थी। पर्यावरण मानक सही पाए जाने पर यह विजिट 3 महीने में बदलने का प्रावधान था। आश्चर्य का विषय यह है कि प्रदूषण बढ़ता गया और निगरानी घटती गई। समिति का दौरा 1 महीने से 3 महीने में बदल गया यह कैसे बदला प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस बात को सार्वजनिक नहीं कर रहा है।
लगातार लोगों पर बुरे असर जारी हैं। किंतु इस पर भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आंख मूंद कर बैठा है। हरित पट्टी विकसित करने के नाम पर हरियाली को जलाने वाला प्लांट यहां स्थापित किया गया। बिना किसी पर्यावरण स्वीकृति के प्लांट का विस्तार कार्य भी शुरू हो चुका है।
राजधानी के नागरिकों ने यह तय कर लिया है कि अब सरकार के एक तरफ प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण के बड़े-बड़े दावे और दूसरी तरफ कचरा ठिकाने लगाने के उपयोगी तरीके के नाम पर राजधानी के नागरिकों पर जहरीले धुएं व पानी की सौगात नहीं सहेंगे।
जब तक जीत नहीं, जंग जारी रहेगी।।