औद्योगिकीकरण पर्यावरण

छत्तीसगढ़ सरकार को यह तय करना होगा कि जीवन चाहिए या उद्योग?-गणेश कछवाहा.


रायगढ़ जिले में अब कोल आधारित उद्योगों की स्थापना या विस्तार पर पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए। रायगढ़ इसे और सहन करने की स्थिति में नहीं है।सरकार को यह तय करना होगा कि जीवन चाहिए या उद्योग?

सरकार की ही रिपोर्ट बता रही है कि प्रदूषण खतरनाक सीमा को पर कर खतरनाक ज़ोन में पहुंच चुका है।जो जीव जगत के लिए गम्भीर खतरा बन गया है।चिकित्सकों की रिपोर्ट भी काफी चिंता व डर पैदा कर रही है।स्वांस , फेफड़े,लिव्हर,चर्मरोग, हृदय एवं केंसर की गंभीर जानलेवा बीमारियों में लगातार वृद्धि हो रही है तथा मृतकों की संख्या में तेजी से वृद्धि होती जा रही है।कफ़ और फेफड़ों में काले काले कण पाए जा रहे हैं।छोटे छोटे बच्चों और वृद्धों पर इसका सबसे ज्यादा विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।बहुत से पशु पक्षी भी यहां से पलायन कर गए हैं। सम्पूर्ण जीव जगत ही खतरे में पड़ गया है।

पर्यावरण विदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, चिकित्सकों,जनसंगठनों, समाचारपत्रों, मीडिया व आर टी आई कार्यकर्ताओं द्वारा ज्ञापनों, पत्रों, सभाओं, सेमिनारों, सम्मेलनों,प्रदर्शनों एवं आदोलनों द्वारा बार बार अवगत कराए जाने के बावजूद जिला प्रशासन व शासन का रवैया काफी गैर ज़िम्मेदाराना पूर्ण व उद्योग परस्त रहा है।
सत्ता बदलने के बाद जनता में कुछ आश जगी है।परन्तु अभी तक सरकार की ओर से इस दिशा में कुछ सार्थक व सकारात्मक कार्यवाही दिखाई नही पड़ रही है।जिससे जनता में आक्रोश व्याप्त होता जा रहा है। अभी हाल में “महाराष्ट्र राज्य ऊर्जा निर्माण कम्पनी लिमिटेड” की जनसुनवाई में जनता का तीव्र आक्रोश व व्यापक जनविरोध इसका ज्वलंत प्रमाण है।

प्रदूषण से मुक्ति ,जल, जंगल , जमीन व पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में सरकार को नीतिगत निर्णय लेने की जरूरत है।छत्तीसगढ़ राज्य बने लगभग 19 वर्ष हो रहे हैं राज्य सरकार के पास कोई जल नीति नहीं है। राज्य की अपनी कोई कृषि व सिंचाई नीति नहीं है।।खेतों में पानी नहीं पहुंच रहा है।जनता को स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध नहीं हो रहा है लेकिन उद्योगों को पानी भरपूर मिल रहा है।नदी,नाले,तालाब व जलस्त्रोत का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया है।उद्योगों लगाने के लिए बड़े बड़े घने जंगलों की कटाई की जा रही है।जंगल क्षेत्रों में कमी के कारण जंगली जानवर दर -बदर भटक कर गांव या शहरी आबादी क्षेत्रों में पहुंचकर जान माल को हानि पहुंचा रहे हैं।दूसरी तरफ आदिवासियों के जीवन व संस्कृति पर भी गम्भीर संकट उत्पन्न ही गया है।आखिर यह कैसा शासन है?और किसके लिए है?कैसा विकास है?छत्तीसगढ़ को बचाने व सही मायने में समुचित विकास के लिये नई सरकार को अपने चाल ,चलन और चरित्र को सुधारना होगा तथा नीतिगत निर्णय लेना होगा।

गणेश कछवाहा
रायगढ़ छत्तीसगढ़।

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