
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले सूरजपुर खनन परियोजनाओं के खिलाफ धरने का आज चौथा दिन है. ग्रामीणों ने कहा अब एक इंच जमीन भी खनन परियोजना के लिए नही दी जाएगी. ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि संवैधानिक नियमो और कानूनों का पालन कराना राज्य सरकार की जिम्मेदारी हैं परंतु खनन परियोजनाओं में वह कारपोरेट के साथ खड़ी हो जाती हैं.
पिछली सरकार के समय पांचवी अनुसूची , पेसा और वनाधिकार कानून का उल्लंघन कर किए गए जमीन अधिग्रहण और वन स्वीकृति को निरस्त करने की बजाए भूपेश सरकार भी कार्पोरेट घरानों के साथ खाड़ी हो गई है. पिछली सरकार की ही तरह भूपेश सरकार भी आदिवासियों का गला घोंट रही है.
ग्लिब्स में प्रकाशित ख़बर के अनुसार मंच से लोगों को संबोधित करते हुए छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला, रेहाना फाउंडेशन के जावेद खान तथा अन्य वक्ताओं ने कहा कि हसदेव अरण्य क्षेत्रवासियों को मालूम है कि सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा तीनों जिला आदिवासी जिले हैं. इन क्षेत्रों में पांचवीं अनुसूची व पेशा कानून लागू है जिसका कड़ाई से पालन नहीं किया जा रहा है. कोल खदानों को अनुमति दी जा रही है जो इस क्षेत्र के लिए षडय़ंत्र प्रतीत होता है. आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में है. एक तरफ पर्यावरण बचाओ दूसरे तरफ लाखों की संख्या में पेड़ को काटने की अनुमति जंगल उजाडऩे का परमिशन क्या जंगल से, पर्यावरण से ज्यादा जरूरी कोयला है? यदि ऐसा है तो पर्यावरण बचाओ पेड़ लगाओ जैसा नारों का कोई औचित्य नहीं है. इन जिलों में दर्जनों प्रजाति के लाखों की संख्या में बहुमूल्य औषधीय पौधे हैं. वन्यप्राणी रहवास क्षेत्र में बन्दर, भालू, सियार, हिरण आदि स्थाई रूप से इस क्षेत्र में रहते हैं. हाथियों का हमेशा आवागमन होते रहता है. दो चार माह हाथी भी इस क्षेत्र में रहते हैं. वर्तमान में हाथी इन्हीं जंगलों में विचरण कर रहे हैं. यह क्षेत्र पांचवीं अनुसूची क्षेत्र अंतर्गत आता है. बिना ग्राम सभा की अनुमति के कोई भी कार्य नहीं किया जा सकता. बिना अनुमति के बाहरी व्यक्ति गांव में नहीं रह सकता, कम्पनी तो बहुत दूर की बात है. यहां पेशा एक्ट लागू है जिसका कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए. भूमि अधिग्रहण बिना ग्रामसभा की सहमति के गलत है. यदि कोई जनप्रतिनिधि या कर्मचारी बिना ग्रामसभा की अनुमति के कोई भी प्रस्ताव करता है तो इसका मतलब है कि उसे ग्रामसभा के सदस्यों की जरूरत नहीं है.