
वे डरते हैं…
वे डरते हैं बोलती हुई लड़की से
वे डरते हैं ज़बान लड़ाने वाली लड़की से
वे डरते हैं इस बात से
कि कहीं वो उनसे प्रश्न न पूछ ले
उसको घरों में सजाया गया
उसको बाज़ार में सजाया गया
उसको राजनीति में सजाया गया
उसको अब आंदोलनों में भी सजाने की कोशिश है
पर इस बार वो नहीं बना पाए उसको बस्तु…सजाने की
उसने नकार दी जब सजावट बना दिए जाने की कोशिश
तो मौका परस्त बोली गई
तो बिकाऊ बोली गई
तो बाज़ारू बोली गई
पर वो फिर असफल रहे
उन्हें वो बोलती
दहाड़ मारके हँसती
डफ़ली बजाती
सवाल उठाती
माइक पर बोलती
बहस करती
गवर्नर से समय मांगती जिद्दी लड़की…बर्दाश्त नही हो रही है
साजिशें जारी हैं अब भी
उसको और बदनाम करने की
ये वही चुनौती है
जिसे
उसने
ध्वस्त किया है…अब तक…हमेशा
इसीलिए वे डरते हैं
वे डरते हैं बोलती हुई लड़की से
वे डरते हैं ज़बान लड़ाने वाली लड़की
शाहीनबाग की महिलाओं को समर्पित प्रियंका शुक्ल की कविता
प्रियंका देशभर के मानव अधिकार आंदोलनों से जुड़ि हुई हैं। वे वकील हैं और छत्तीसगढ़ में रहकर महिलाओं, बच्चों, आदिवासियों, दलित, शोषितों के अधिकारों की की रक्षा के लिए कार्य कर रही हैं।