करीब उन्नीस सौ पिच्चासी की बात होगी,
तब मैं युवा था और कालेज से ताज़ा ताज़ा निकला था,
गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता निर्मला देशपांडे ने मुझसे कहा कि जाओ मथुरा चले जाओ,
वहाँ एक गाँव में पंचायती राज के बारे में एक शिविर का आयोजन किया गया है उसका संचालन करो,
तब तक छात्र जीवन में मेरी सक्रियता और लेखन की वजह से मुझे वरिष्ठ सर्वोदयी कार्यकर्ता काफी पसंद करने लगे थे,
मैं मथुरा के भैंसा नामक गाँव में पहुंचा,
मैं ग्राम प्रधान के घर पर रुका,
पांच हजार की आबादी वाला गाँव लेकिन पंचायती राज के प्रशिक्षण में सिर्फ बीस के करीब ही लोग आये वो भी केवल पुरुष,
मैं भी युवा जोश से भरा हुआ था, मैंने गांधी और विनोबा की पढ़ी हुई तरकीब अपनाने का फैसला किया,
मैंने महिला प्रधान के छोटे बेटे को अपने साथ लिया और उससे कहा कि मुझे पंसारी की दुकान पर ले चलो,
मैंने पंसारी की दुकान से टाफियां खरीदीं और रास्ते में उस बच्चे के जितने भी दोस्त और दूसरे बच्चे मिले उन्हें टाफियां दीं और उनसे पूछा कि कहानी सुनोगे ?
बच्चे खुशी-खुशी मेरे साथ लग लिए,
मैं बच्चों के दल को लेकर प्रधान के घर के पास एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठ गया, सारे बच्चे मुझे घेर कर बैठ कर कहानी सुनने लगे,
दो तीन कहानियां सुनाने के बाद मैंने बच्चों से कहा कि बस आज और कहानी नहीं सुनाऊंगा बाकी की कहानी तब सुनाऊंगा जब तुम लोग एक काम करोगे,
बच्चों ने पूछा क्या काम ?
मैंने कहा देखो ये सामने जो गली है उसमें नालियों का पानी सड़क पर आ रहा है,
कल सुबह स्कूल जाने से पहले हम सब मिल कर नालियां साफ़ करेंगे,
वह ब्राह्मणों का मोहल्ला था बच्चे भी शायह सभी ब्राह्मण होंगे,
बच्चों ने कहा नाली साफ़ करना तो भंगी का काम है,
मैंने कहा हमारी गली साफ़ होगी तो हमें ही तो मज़ा आएगा,
बच्चे बोले घर वाले हंसी उड़ायेंगे हमें भंगी कहेंगे,
मैंने कहा जो ऐसा बोले उसे दांत दिखा देना,
अगली सुबह मेरे घर से निकलने से पहले आठ बच्चे झाड़ू और फावड़े लेकर जमा हो गए थे,
मैंने भी एक फावड़ा लिया और नाली में भरा हुआ गाद निकालने लगा,
मेरे साथ बच्चे भी नालियों की गाद निकाल कर सड़क के किनारे जमा करने लगे,
शुरू में गली में से निकलने वाले लोग अचरज से हम सब को देख कर सीधे चल दिए,
थोड़ी देर में घरों में से निकल कर महिलाओं ने झांकना शुरू कर दिया,
कुछ महिलायें हंस कर बच्चों से कहने लगीं कि भंगियों वाला काम क्यों कर रहे हो ?
बच्चों ने सिखाये गए तरीके से उन्हें जवाब देने की बजाय अपने दांत दिखा दिये और काम में लगे रहे,
पंद्रह बीस मिनट के बाद गली के परले छोर यानी मुख्य सड़क पर दस बारह लोग हम लोगों को देखने खड़े हो गए,
दस मिनट बाद एक युवा लड़का अपनी बुग्गी ले आया और बोला कि ये नाली की गाद तो खाद है इसे मैं अपने खेत में डालूँगा,
वह लड़का नाली से निकली गाद अपनी बुग्गी में भरने लगा,
इतनी देर में तीन युवक भी अपने फावड़े लेकर नाली की गाद निकालने में लग गए,
करीब एक घंटा लगा पूरी गली की नालियों का गाद साफ़ हो गया,
सड़क का पानी फिर से नालियों में बहने लगा,
इस बीच एक और युवक अपनी बुग्गी लेकर आ गया,
निकली हुई गाद दोनों बुग्गी वाले अपनी बुग्गियों में भर कर खेत में ले गये,
मैंने बच्चों से कहा कल हम बराबर वाली गली भी ऐसे ही साफ़ करेंगे,
बच्चे अपने घर चले गए मैं नहा धोकर पंचायत ट्रेनिंग में पहुंचा,
ट्रेनिंग में पहुँच कर मैं दंग रह गया,
आज ट्रेनिंग में करीब सौ गाँव वाले जमा थे, जिनमें साठ के करीब महिलायें थीं,
ट्रेनिंग से लौट कर देखा कि आज बच्चों की टोली दुगनी संख्या में कहानी सुनने के लिए जमा थी,
बच्चों ने आज के अपने अनुभव लोटपोट होकर सुनाये,
कौन कैसे हैरत से देख रहा था उनकी नकल उतार कर दिखाई,
कहानी के बाद कल बराबर वाली गली साफ़ करने का तय हुआ,
अगले दिन बच्चों के साथ सफाई करने के लिए पहुंचा तो मैंने देखा वहाँ करीब पन्द्रह बच्चों के साथ सात-आठ युवक भी थे और चार बुग्गियां नालियों से निकली गाद ले जाने के लिए गली के बाहर तैयार थीं,
पन्द्रह मिनट के अंदर हम सब ने पूरी गली की गाद निकाल कर बाहर कर दी,
बुग्गियां गाद भरने में लग गयीं,
हमारा दल अगली गली में सफाई करने पहुंचा, पांच मिनिट के अंदर उस गली के भी युवक सफाई करने के लिए फावड़े लेकर आ गए,
अब तो हम लोगों की काम की रफ़्तार बहुत बढ़ चुकी थी,
हमारी सफाई की यह सेना तीसरी गली में पहुँची, तब तक करीब चालीस युवक और दो ट्रैक्टर भी इस सेना में शामिल हो चुके थे,
उस दिन हमने चार गलियाँ साफ़ कर दीं,
सफाई का काम पूरा करके मैं ट्रेनिंग के लिए गाँव की चौपाल पर पहुंचा,
आज वहाँ करीब चार सौ लोग जमा थे,
वहाँ दिन में लोगों ने कहा कि आप खाली भाषण देने वाले नहीं हो बल्कि आप काम भी करते हो इसलिए हम आपकी बात सुनने आये हैं,
अगले दिन पूरे गाँव में लोग अपनी अपनी गलियाँ साफ़ करने में खुद ही लग गए,
आज मेरा काम सेनापति का था, मैं घूम-घूम कर पूरा काम देख रहा था,
आज करीब सात आठ ट्रैक्टर और तीस से ज़्यादा भैंसा बुग्गियां सफाई में लगी हुई थीं,
करीब दो ढाई घंटे में पूरे गांव की सड़कें साफ़ हो गयीं थीं, कूड़े के ढेर गायब हो गए,
पूरा गाँव ऐसा साफ़ लगने लगा जैसे आज कोई शादी हो,
आज ट्रेनिंग का आखिरी दिन था,
करीब पन्द्रह सौ लोग वहाँ जमा थे,
खूब ज़ोरदार ट्रेनिंग सत्र चला, महिलाओं की बराबरी, जाति की कुरीति और मिल बैठ कर फैसले लेने की बात पर ज़ोरदार चर्चा हुई,
मैं दिल्ली वापिस आने के लिए ट्रेन में बैठने के लिए आया तो करीब तीस युवक मुझे छोड़ने आये,
मैं दिल्ली पहुंचा तो निर्मला देशपांडे ने कहा शाबास, तुमसे मुझे जो उम्मीद थी तुमने वैसा ही कर के दिखाया,
बाद में कुछ साल के बाद मैंने जब छत्तीसगढ़ जाकर काम किया तो मेरा पंचायती राज का पुराना अनुभव मेरे बहुत काम आया,
छत्तीसगढ़ सरकार ने मुझे राज्य स्तरीय स्रोत व्यक्ति बनाया और मुझे सरपंचों, ब्लाक और ज़िला पंचायत के सदस्यों के प्रशिक्षण में कई साल तक बुलाया,
इसकी वजह से हर गाँव में मुझे जानने वाले लोग मिल ही जाते थे, मेरे कार्यकर्ता बताते थे कि गुरूजी हमारे सरपंच आपकी बहुत तारीफ़ करते हैं,
बाद में तो जब सरकार ने आदिवासियों की ज़मीनें छीनने के लिए उनके गांव जलाने शुरू किये तो हमने इसका विरोध किया,
तो सरकार ने मुझे नक्सली समर्थक कहना शुरू कर दिया और फिर हमारे आश्रम पर बुलडोज़र चला दिया, मेरे कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया और मुझे छत्तीसगढ़ से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया,
-(हिमांशु कुमार गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हैं। और आजकल हिमाचल प्रदेश में रह रहे हैं।)
http://janchowk.com/ART-CULTUR-SOCIETY/cleaning-panchaytiraj-gandhi-gaon-vinoba-children-pradhan/358