लोकजतन: 16-31 मार्च का सम्पादकीय
● यह दूसरी बार हुआ, जब मध्यप्रदेश शासन ने उर्दू अकादमी को संस्कृति विभाग से निकालकर अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के हवाले कर दिया है। शासन की सोच पर तरस आता है कि वह सच्चर कमेटी की रिपोर्ट लागू करने की जगह उर्दू अकादमी को अल्पसंख्यक विभाग को सौंपकर मान रहा है कि उसने मायनोरटीज का कल्याण कर दिया। उसको यह भी गलतफहमी है कि ऐसा करके उसकी झोली में वोटों की बरसात हो जाएगी।
● अफसोस है कि यह कदम वह कांग्रेस उठा रही है जिसके राष्ट्रपिता गांधी ने हिन्दी-उर्दू में साम्प्रदायिक आधार पर किए जा रहे अलगाव को रोकने के लिए ‘‘हिन्दूस्तानी’’ की वकालत की थी ताकि आम जनता में हिन्दी-उर्दू का बनावटी फर्क जड़ न जमा पाए। यह नेहरू की कांग्रेस है जो उर्दू के तरफदार तो थे ही और जिन्होंने अपनी आवामी तकरीरों में हिन्दुस्तानी के अलावा कभी कुछ बोला ही नहीं।
● भाषा किसी धर्म, सम्प्रदाय, जाति की नहीं होती। वह इलाकाई होती है। बांग्ला, मराठी, गुजराती आदि जिस तरह की क्षेत्रीय भाषाए हैं, उस तरह हिन्दी-उर्दू नहीं। भारतीय उप महाद्वीप में जहां जहां हिन्दी है वहां वहां उर्दू है और जहां जहां उर्दू है वहां उसकी हमजोली हिन्दी है। इसलिए इनके संगम को सदा गंगा-जमुनी कहा और माना गया है। दिलचस्प है कि दोनों का नाभि-नाल संबंध अमीरखुसरो से है और दोनों का पालना बृज और अवधी का रहा है।