विचारों का साझा मंच
4.04.2018
‘वहां कुछ लोग और कुछ किसान इकठ्ठा थे’, इस तरह के वाक्यों से हमने जिन लोगों को इंसानी जमात से ही बाहर कर दिया है उनकी समस्याओं का एक अंश मात्र लिख रहा हूंl
आपके लिए सुझाव ये है कि मत पढ़ियेगा ये लेख क्योंकि इसमें कोई ज़रूरी बात नहीं लिख रहा हूंl नहीं लिख रहा हूं किसी सेक्स सीडी के बारे में, नहीं लिख रहा हूं किसी क्रिकेटर की लव स्टोरी, नहीं दे रहा रहा हूं पाकिस्तान को गाली, न इसमें सेना का ज़िक्र है न कश्मीर का और न नक्सलियों का और न आपके पसंदीदा विषय हिंदुत्व की ही बात करूँगा इसलिए मत पढ़िए इसेl नहीं मुझे आपके कीमती समय की चिन्ता कतई नहीं सता रही हैl मैं चाहता हूं कि आप ज़लील महसूस करेंl अब बात शुरू करता हूँl
बीते दिनों महाराष्ट्र में किसानों का एक बड़ा आन्दोलन देखा ये किसान नासिक से चलकर मुम्बई पहुचे थे कुछ दूर साथ चला फिर सोमैय्या मैदान में उनके साथ बैठा रहाl सोचा था बहुत सी बात कर लूंगा, मन भर के सवाल पूछ लूंगा पर उनके चेहरे देख कर सवाल पूछने की हिम्मत ही नहीं हो रही थीl जो थोड़ी बहुत बात हुई उसमे उन्होंने कहा कि वो कुछ नहीं चाहते बस जिन्दा रहना चाहते हैंl
कुछ महीने पहले उड़ीसा के किसान दिल्ली पहुचे थे अपने मरे पूर्वजों का कंकाल साथ लेकरl वो भी कोई ख़ज़ाना नहीं मांग रहे थे बस अपने हिस्से का पानी मांग रहे थेl मैं कुछ बोतलों से ज़्यादा पानी नहीं दे पाया उनको, जिनको देना था उन्होंने कहा कि ये फर्जी किसान हैं मिनरल वाटर पी रहे हैंl
छत्तीसगढ़ में 2006 से 2010 तक की अवधि में किसानों की आत्महत्या के औसतन 1555 मामले हर साल दर्ज किये गए हैं यानि 4 किसान हर रोज़l Source- PTI
अभी छत्तीसगढ़ में हूँ यहां के किसानों को अपने सामने मजदूर बनते और मरते देखा हैl छत्तीसगढ़ प्रदेश लगातार कई वर्षों से सूखे से जूझ रहा है हालांकि इसके कारण की बात करेंगे तो कई नेताओं और नौकरशाहों के नंगेपन पर लम्बी बात करनी पड़ेगी तो फिलहाल इतना सीधा नहीं जातेl गौरतलब हो कि छत्तीसगढ़ में पिछले 3 कार्यकाल से भाजपा की सरकार हैl सूखा राहत के नाम पर यहां सिर्फ़ ज़ख्म कुरेदे जाते हैंl 2014 के पहले तक छत्तीसगढ़ को पर्याप्त सूखा राहत न मिलने का कारण केंद्र की कांग्रेस सरकार को बताकर मुख्यमंत्री रमन सिंह सरकार अपना पल्ला झाड़ लिया करते थे पर अब तो केंद्र में भी भाजपा है और राज्य में भी इसके बावजूद छत्तीसगढ़ को सूखा राहत के नाम पर झुनझुना ही पकडाया गया हैl
केंद्र ने 2017-18 में देश के 3 राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सूखा घोषित कियाl इन तीनों राज्यों में सबसे खराब हालत छत्तीसगढ़ की ही हैl छत्तीसगढ़ के 27 में से 21 ज़िलों को सूखा प्रभावित माना गया है वहीँ मध्यप्रदेश के 18 और राजस्थान के 13 ज़िले सूखा प्रभावित रहेl
केंद्र की विशेष टीम ने सूखे की इस घोषणा के बाद छत्तीसगढ़ का दौरा किया और पूरा सर्वेक्षण भी कियाl इस सर्वेक्षण के बाद ये उम्मीद जताई जा रही थी कि केंद्र से इतनी राहत तो मिल ही जाएगी कि जिससे किसानों को कम से कम पर्याप्त मुआवज़ा तो मिल ही सकेl पर नतीजा वही ढाक के तीन पात ही रहाl
छत्तीसगढ़ ने केंद्र से लगभग 4401 करोड़ रुपयों की मदद मांगी थी पर अफ़सोस कि इसका 10 प्रतिशत भी राज्य को मिल नहीं पायाl राज्य को महज़ 395.31 करोड़ थमा दिए गएl किसानों को उनकी फसलों के नुकसान का मुआवज़ा देने के लिए ही 1307 करोड़ रूपए मांगे गए थे लेकिन मिली हुई रकम इस एक मद का आधा भी नहीं हैl सूखा प्रभावित 96 तहसीलों में कई तरह की योजनाएं चलाने हेतु कई मदों में पैसे मांगे गए थे पर किसी भी मद में पर्याप्त रकम नहीं मिल पाईl
जो रकम मिली भी है वो किसानों के पास पहुचेगी इसकी संभावना कम है, ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इसी हफ़्ते छात्तीसगढ़ की अरपा नदी से लगे कुछ गावों का दौरा किया हैl ये गांव उस इलाके में पड़ते हैं जहां अरपा नदी अब सूख चुकी है बारिश में भी सिर्फ़ कुछ ही दिनों के लिए इसमें पानी रहता हैl
यहां लगभग 50 किसानों से मुलाकात की उन्होंने बताया कि पहले साल भर कुएं में पानी रहता था जिससे सिचाई की समस्या नहीं थीl अब चूंकि नदी सूख गई तो कुओं में भी पानी नहीं है लिहाज़ा इन सभी किसानों को अपने खेतों में बोरवेल लगवाना पड़ा हैl
एक बोरवेल की लागत इन्होने एक से डेढ़ लाख रूपए बताई हैl और गौर करने वाली बात ये कि यहां के किसी भी किसान को बोरवेल करवाने के लिए सरकार की तरफ़ से एक फूटी कौड़ी की भी नहीं मिली हैl हां इतना है कि यहां के सरपंच महोदय अब बोलेरो में चलने लगे हैंl
अब ऐसे में भाजपा से ये सवाल क्यों न पूछा जाए कि आपके पास लगभग 1400 करोड़ की लागत से पार्टी मुख्यालय बनाने के लिए तो पैसे हैं पर छत्तीसगढ़ के किसानों को देने के लिए पैसे क्यों नहीं हैl कहीं ऐसा तो नहीं कि किसानों के हक़ के पैसे से ही पार्टी मुख्यालय का पलस्तर हुआ हैl हो सकता है आप इन बातों को निरे आरोप और कोरी बकवास कह दें पर एक बार किसान हो कर भी सोचियेगा शायद कुछ घाव दिखाई दे जाएंl
बात यहां ख़त्म नहीं हो जाती केंद्र की लापरवाही तो अपनी जगह है ही पर राज्य की रमन सरकार ने भी कोई कम गुल नहीं खिलाए हैंl किसान क़र्ज़ से मर रहा है और रमन सरकार राज्योत्सव में करोड़ों खर्च कर रही हैl किसान क़र्ज़ से मर रहा है और राज्य सरकार शहरों में चबूतरे बनवा रही हैl किसान क़र्ज़ से मर रहा है और मंत्री जी अपने पिता की स्मृति में ऑडिटोरियम बनवा रहे हैंl
ये वही छत्तीसगढ़ है जहां पिछले 15 सालों में 15000 से ज़्यादा किसानों ने आत्महत्या कर ली हैl NCRB यानी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े ये सच बताते हैंl समाचारों से मिली जानकारी के अनुसार NCRB ने 2011 से 2013 के बीच हुई किसानों की इस तरह की मौतों की गणना ही नहीं की वरना ये आंकड़े शायद और डरावने हो जातेl वर्ष 2014 में आई NCRB की रिपोर्ट में किसानों की खुदखुशी के मामले में महाराष्ट्र, तेलंगाना और मध्यप्रदेश के बाद छत्तीसगढ़ चौथे स्थान पर रहाl
आंकड़ों की मानें तो छत्तीसगढ़ में 2006 से 2010 तक की अवधि में किसानों की आत्महत्या के औसतन 1555 मामले हर साल दर्ज किये गए हैं यानि 4 किसान हर रोज़l जब आंकड़ों ने सरकार की पोल खोल दी तब सरकार आंकड़ों की लीपापोती में और उसे छुपाने में लग गईl 2011 में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा अचानक से शून्य हो गयाl 2012 में केवल 4 किसानों की आत्महत्या दर्ज हुई और 2013 फिर से किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा शून्य हो गयाl सुप्रीम कोर्ट ने जब इस पर सवाल उठाए तब कहीं जा कर सरकार ने इन आंकड़ों में थोड़ा इज़ाफ़ा स्वीकार कियाl
2013 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ये वादा किया था कि वो किसानों से 2100 रूपए प्रति क्विंटल की दर से धान ख़रीदेगी और 300 रूपए प्रति क्विंटल बोनस भी देगी फिर सरकार ने बोनस देना ही बन्द कर दियाl पिछले कुछ वर्षों में किसानों की उत्पादन लागत लगभग 20 प्रतिशत बढ़ी है और समर्थन मूल्य में पहले की अपेक्षा सिर्फ़ 50 से 90 रूपए ही बढ़े हैंl बीते सालों में किसानों ने फसलों का मौसम आधारित बीमा भी कारवाया था इसका उन्हें तो कोई फायदा मिला नहीं उल्टे बीमा कम्पनियां ज़रूर मालामाल हो गईंl
एक अनुमान के अनुसार जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तब यहां किसानों की संख्या लगभग 45 प्रतिशत और मजदूरों की संख्या लगभग 32 प्रतिशत थी लेकिन अब ये आंकड़ा पलट गया है किसान 32 प्रतिशत रह गए हैं और मजदूर 42 प्रतिशत हो गए हैंl
किसान कम होते जा रहे हैं और मजदूर बढ़ते जा रहे हैंl भूमि अधिग्रहण कानून को किसानों और आदिवासियों की ज़मीन हड़पने के लिए एक टूल की तरह इस्तेमाल किया जाता हैl इस ज़मीन को बड़े उद्योग घरानों को कारखाने और माइनिंग जैसे कमाऊ कामों के लिए दे दिया जाता हैl और ये बात तो हम सभी समझ सकते हैं कि ग़रीबों से छीन कर रईसों को देने के धंधे में हथेलियां भी गर्म की गई होंगी, तलवे भी चाटे गए होंगे, ईमान भी बेचा गया होगा, किसान भी मारा गया होगाl
पर यकीन मानिए इन किसानो ने आत्महत्या नहीं की है इन्हें मारा गया है और मौतों के ज़िम्मेदार किसी नेता या नौकरशाह से कहीं ज़्यादा हम और आप हैंl क्यूंकि किसानों की मौत के ये आंकड़े कोई पहली बार तो सामने नहीं आए हैंl कोई पहली बार तो ये समाचार नहीं छप रहा है और ना ही आप कोई पहली बार कोई ऐसा आर्टिकल पढ़ रहे हैंl ऐसी हर मौत आपकी नज़र से हो कर गुज़रती है और आप हर बार नज़रअंदाज़ कर देते हैंl ये किसान इसलिए मर रहे हैं क्योंकि आपने कभी अपने नेता से ये नहीं पूछा कि मैं और मेरा बच्चा जिस किसान का उगाया खा कर जिन्दा हैं वो किसान मर क्यों रहा है?
ये आर्टिकल किसी नेता को लाइन में लाने के लिए नहीं लिखा हैl ये आर्टिकल लिखा है हर आम आदमी इसे पढ़े और महसूस करे कि वो कितना गैरज़िम्मेदार हैl अपने देश के प्रति वो महसूस करे कि दरअसल इन मौतों का ज़िम्मेदार वो भी हैl
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